________________ सत्तरसमाइ-वीसइम-पज्जंता उद्देसगा सत्रहवें से लेकर बोस उद्देशक तक मिथ्यादृष्टि नारक सम्बन्धी चार उद्देशक 1. मिच्छाविट्ठीहि वि चत्तारि उद्देसमा कायव्वा जहा भवसिद्धीयाणं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! / // इक्कतीसइमे सए : सत्तरसमाइ-धीसहम-पज्जंता उद्देसमा समता // [1] मिथ्यादृष्टि के भी भवसिद्धिकों के समान चार उद्देशक कहने चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // इकतीसवां शतक : सत्रहवें से बीसवे उद्देशक तक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org