________________ अट्ठमो उद्देसओ : 'ओहे' अष्टम उद्देशक : 'प्रोध' चौबीस दण्डकवर्ती जीवों को उत्पत्ति का विविध पहलुत्रों से निरूपण 1. रायगिहे जाव एवं बयासी--- [1] राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा--- 2. नेरतिया णं भंते ! कहं उववज्जति ? गोयमा ! से जहाणामए पवए पवमाणे अज्झवसानिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं ठाणं विप्पजहिता पुरिमं ठाणं उपसंपज्जित्ताणं विहरति, एवामेव ते वि जीवा पवओ विव पवमाणा प्रझवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं भवं विप्पजहित्ता पुरिमं भवं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति / [2 प्र.] भगवन् ! नरयिक जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? [2 उ. गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसायनिर्वतित (निष्पन्न) क्रियासाधन द्वारा उस स्थान को छोड़ कर भविष्यत्काल में अगले स्थान को प्राप्त होता है, वैसे ही जीव भी कूदने वाले की तरह कूदते हुए अध्यवसायनिर्वतित क्रियासाधन द्वारा अर्थात् कमों द्वारा उस (पूर्व) भव को छोड़ कर भविष्यकाल में उत्पन्न होने योग्य (आगामी) भव को प्राप्त होकर उत्पन्न होते हैं। 3. तेसि णं भंते ! जीवाणं कह सोहा गती ? कहं सोहे गतिविसए पन्नते ? गोयमा ! से जहानामए केई पुरिसे तरुणे बलवं एवं जहा चोदसमसए पढमुद्देसए (स० 14 उ०१ सु०६) जाव तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जति। तेसि णं जीवाणं तहा सीहा गती, तहा सोहे गतिविसए पन्नते। [3 प्र.] भगवन् ! उन (नारक) जीवों की शीघ्रगति और शीघ्रगति का विषय कैसा होता है ? [3 उ.] गौतम ! जिस प्रकार कोई पुरुष तरुण और बलवान् हो, इत्यादि चौदहवें शतक के पहले उद्देशक [के सू. 6] के अनुसार यावत् तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होते हैं। उन जीवों की वैसी शीघ्र गति और वैसा शीघ्रगति का विषय होता है। 4. ते णं भंते ! जीवा कहं परभवियाउयं पकरेंति ? गोयमा ! अज्भवसाणजोगनिम्नत्तिएणं करणोवाएणं एवं खलु ते जीवा परभवियाउयं पकरति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org