________________ तइओ उद्देसओ : तृतीय उद्देशक चतुर्विध क्षुद्रयुग्म-विशिष्ट नीललेश्यो नरयिकों सम्बधी प्ररूपरणा 1. नीललेस्सखुड्डागाउजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ? एवं जहेव कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मा, नवरं उववातो जो वालुयप्पभाए / सेसं तं चेव / [1 प्र.] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-प्रमाण नीललेश्यी नै रयिक कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! कृष्णलेश्यो क्षुद्रकृतयुग्म नैरयिक के समान / किन्तु इनका उपपात बालुकाप्रभापृथ्वी के समान है / शेष पूर्ववत् / 2. बालुयप्पभपुढविनीललेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया० ? एवं चेव / [2 प्र. भगवन् ! नीललेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्मराशिप्रमाण बालुकाप्रभापृथ्वी के ने रयिक कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? [2 उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना। 3. एवं पंकप्पभाए वि, एवं धूमप्पभाए वि / [3] इसी प्रकार पकप्रभा और धूमप्रभा वाले क्षुद्रकृतयुग्म नीललेश्यों के विषय में समझना चाहिए। 4. एवं चउसु वि जुम्मे तु, नवरं परिमाणं जाणियध्वं, परिमाणं जहा कण्हलेस्सउद्देसए / सेसं तहेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! तिः। // इक्कतीसइमे सए : ततिम्रो उद्देसओ समतो // 31-3 // {4} इसी प्रकार चारों युग्मों के विषय में समझना। परन्तु विशेष यह है कि जिस प्रकार कुष्णलेश्या के उद्देशक में परिमाण बताया है, उसी प्रकार यहाँ भी समझना / शेष सब पूर्वकथितानुसार जानना। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only