________________ इकतीसवां शतक : उद्देशक 3] [613 विवेचन-नीललेश्यी नैरयिक सम्बन्धी-इस तृतीय उद्देशक में नीललेण्या वाले नैरयिकों की प्ररूपणा की गई है। नीललेश्या तृतीय, चतुर्थ और पंचम नरकपृथ्वी में होती है / इसलिए एक सामान्य दण्डक तथा तीन नरक-सम्बन्धी तीन दण्डक, यों चार दण्डक कहे हैं। यहाँ नीललेश्या का प्रकरण है / नीललेश्या बालुकाप्रभा में होती है, इस अपेक्षा से इसमें जिन जीवों की उत्पत्ति होती है, उन्हीं की उत्पत्ति जाननी चाहिए। इसमें असंजी और सरीसृप के सिवाय शेष तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और गर्भज मनुष्य उत्पन्न होते हैं।' // इकतीसवां शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त। 1. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 950 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org