________________ 514] [भ्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [253 प्र.] (भगवन् ! ) कषायव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? [253 3.] (गौतम ! ) कषायव्युत्सर्ग चार प्रकार का कहा गया है। यथा-क्रोधव्युत्सर्ग, मानव्युत्सर्ग, मायाव्युत्सर्ग और लोभव्युत्सर्ग / यह है कषायव्युत्सर्ग का वर्णन / 254. से किं तं संसारविप्रोसग्गे ? संसारविओसग्गे चउम्विधे पन्नत्ते, तं जहा--नेरइयसंसारविश्रोसग्गे जाव देवसंसारविप्रोसग्गे / से तं संसारवियोसगे। [254 प्र.] (भगवन् ! ) संसारव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? [254 उ.] (गौतम !) संसारव्युत्सर्ग चार प्रकार का कहा है। यथा-नैरयिकसंसार. व्युत्सर्ग यावत् देवसंसारव्युत्सर्ग / यह हुआ संसारव्युत्सर्ग का वर्णन / 255. से कितं कम्मविभोसग्गे ? कम्मविश्नोसग्गे अट्टविधे पन्नत्ते, तं जहा--णाणावरणिज्जकम्मविनोसग्गे जाव अंतराइयकम्मविश्नोसग्गे / से तं कम्मविप्रोसग्गे / से तं भावविभोसग्गे / से तं अम्भितरए तवे। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति। ॥पणवीसइमे सए : सत्तमो उद्देसओ समत्तो // 25-7 // [255 प्र.] (भगवन् ! ) कर्मव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? [255 उ. (गौतम ! ) कर्मव्युत्सर्ग पाठ प्रकार का कहा गया है / यथा-ज्ञानावरणीयकर्मव्युत्सर्ग यावत् अन्तरायकर्मव्युत्सर्ग / यह कर्मव्युत्सर्ग हुआ। साथ ही भावव्युत्सर्ग का वर्णन भी पूर्ण हुआ। इस प्रकार प्राभ्यन्तर तप का वर्णन पूर्ण हुआ। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कहकर गौतमस्वामो यावत् विचरण करते हैं। विवेचन व्युत्सर्ग : स्वरूप और प्रकार किसी वस्तु पर से ममत्व का त्याग करना अथवा परभावों या विभावों का त्याग करना भी व्युत्सर्ग है। सामान्यतया व्युत्सर्ग दो प्रकार का हैद्रव्यव्युत्सर्ग और भावव्युत्सर्ग / द्रव्यव्युत्सर्ग के चार भेदों का स्वरूप इस प्रकार है (1) शरीरव्युत्सर्ग-ममत्व रहित होकर शरीर का त्याग करना अथवा शरीर पर आसक्ति या मूर्छा को त्यागना। (2) गणव्युत्सर्ग-अपने गण का त्याग करके 'जिनकल्प' अवस्था स्वीकार करना। (3) उपधिव्युत्सर्ग-किसी कल्पविशेष में उपधि (भण्डोपकरण) का भी त्याग करना / (4) भक्तपानव्युत्सर्ग-सदोष आहारपानी का या यावज्जीव अनशन करके चतुविध आहार का त्याग करना। ... भावव्युत्सर्ग के तीन भेदों का स्वरूप इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org