________________ अट्ठाईसवां शतक : उद्देशक 2] शंका : समाधान-प्रथम भंग में कहा गया है सभी तिर्यञ्चयोनिक से पाकर उत्पन्न हुए, किन्तु सिद्धान्तानुसार तिर्यञ्च तो पाठवें देवलोक तक ही उत्पन्न हो सकते हैं, तब फिर तिर्यञ्च से निकले हुए पानतादि देवों में कैसे उत्पन्न हो सकते हैं ? तथा तिर्यञ्च से निकले हुए तीर्थकरादि उत्तम पुरुष भी नहीं होते, ऐसी शंका द्वितीय प्रादि भंगों में होती है। इसका समाधान वृत्तिकार ने यह किया है कि वृद्ध-प्राचार्यों को धारणानुसार ये भंग वाहुल्य को लेकर समझने चाहिए।' // अट्ठाईसवां शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त // - 1. भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 941 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org