________________ 594] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 76. अकिरियावाई अन्नाणियवाई वेणइयवाई चम्विहं पि पकरेंति / [79] अभियावादी, प्रशानबादी और विनयवादी (कृष्णलेश्यी) चारों प्रकार का आयुष्यबन्ध करते हैं। 80. जहा कण्हलेस्सा एवं मोललेस्सा वि, काउलेस्सा वि। [80] नीललेश्यी और कापोतलेश्यी का आयुष्यबन्ध भी कृष्णलेपयी के समान है। 81. तेउलेस्सा जहा सलेस्सा, नवरं प्रकिरियावादी अनाणियवादी घेणइयवादी य नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाउयं पि पकरेंति / 81] तेजोलेश्यो का प्रायुष्यबन्ध सलेश्या के समान है। परन्तु अक्रियावादी, अज्ञानवादी पौर विनयवादी जीव नैरयिक का प्रायुष्य नहीं बांधते, वे तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का आयुष्य बांधते हैं। 82. एवं पम्हलेस्सा वि, सुक्कलेस्सा वि भाणियल्वा / [82) इसी प्रकार पद्मलेश्यी और शुक्ललेश्यी जीवों के प्रायुष्यबन्ध के विषय में कहना चाहिए। 53. कण्हपक्खिया तिहि समोसरणेहिं चउब्धिहं पि पाउयं पकरेंति / [83] कृष्णपाक्षिक प्रक्रियावादी, प्रज्ञानवादी और विनयवादी (इन तीनों समवसरणों के) जीव चारों ही प्रकार का प्रायुष्यबन्ध करते हैं / 84. सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा। [84] शुक्लपाक्षिकों का कथन सलेश्यी के समान है / 85. सम्मद्दिट्ठी जहा मणपज्जवनाणी तहेव वेमाणियाउयं पकरेंति / [85] सम्यग्दृष्टि जीव मनःपर्यवज्ञानी के सदृश वैमानिक देवों का प्रायुष्यबन्ध करते हैं / 86. मिच्छट्टिी जहा कण्हपक्खिया। [86] मिथ्यादृष्टि का प्रायष्यबन्ध कृष्णपाक्षिक के समान है। 87. सम्मामिच्छट्ठिी ण एक्कं पि पकरेंति जहेव नेरतिया। [7] सम्यगमिथ्यादष्टि जीव एक भी प्रकार का प्रायुष्यबन्ध नहीं करते। उनमें नैरयिकों के समान दो समवसरण होते हैं / 18. नाणी जाव ओहिनाणी जहा सम्मट्टिी। [88] ज्ञानी (से लेकर) यावत् अवधिज्ञानी तक के जीवों का आयुष्यबन्ध सम्यग्दृष्टि जीवों के समान जानना। 86. अन्नाणी जाव विभंगनाणो जहा कण्हपक्खिया। [8] अज्ञानी (से लेकर) यावत् विभंगज्ञानी तक के जीवों का आयुष्यबन्ध कृष्णपाक्षिकों के समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org