________________ इकतीसवां शतक : उद्देशक 1] [607 विवेचन-क्षद्रयुग्म : स्वरूप और प्रकार-लघुसंख्या (अल्पसंख्या) वाली राशि-विशेष को क्षुद्रयुग्म कहते हैं। इनमें से चार, पाठ, बारह आदि संख्या वाली राशि को 'क्षुद्रकृतयुग्म' कहते हैं / तीन, साल, ग्यारह आदि संख्या वाली राशि को 'क्षुद्रश्योज' कहते हैं। दो, छह, दस आदि संख्या वाली राशि को 'क्षुद्रद्वापरयुग्म' कहते हैं और एक, पांच, नौ ग्रादि संख्या वाली राशि को 'क्षुद्र कल्योज' कहते हैं।' चतुर्विध क्षुद्रयुग्म नैरयिकों के उपपात के सम्बन्ध में विविध प्ररूपणा 3. खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! को उबवज्जति ? कि नेरइएहितो उवधज्जति, तिरिक्ख० पुच्छर / ___गोयमा ! नो नेरइहितो उववज्जति, एवं नेरतियाणं उववातो जहा वक्कंतीए तहा भाणितम्वो। [3 प्र.] भगवन् ! क्षद्रकृतयुग्म-राशिपरिमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से पाकर उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यञ्चयोनिकों से पाकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [3 उ.] गौतम ! वे नै रयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, (किन्तु पंचेन्द्रियतिर्यञ्च और गर्भज मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं।) इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद में कथित नैरयिकों के उपपात के अनुसार यहाँ कहना चाहिए / 4. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! चत्तारि वा, श्र? वा, बारस बा, सोलस वा, संखेज्जावा, असंखेज्जा वा उववज्जति। 14 प्र. भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [4 उ.] गौतम ! वे चार, पाठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। 5. ते पं भंते ! जीवा कहं उववज्जति ? गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे अज्झवसाण एवं जहा पंचवीसतिमे सते अट्ठमुद्देसए नेरइयाणं वत्तवया तहेव इह वि भाणियन्वा (स० 25 उ०८ सु०२-८) जाव प्रायप्पयोगेण उववज्जंति, नो परप्पयोगेण उववज्जति / [5 प्र.] भगवन् ! वे जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? [5 उ.] गौतम ! जिस प्रकार कोई कूदने वाला, कूदता-कदता अपने पूर्वस्थान को छोड़ कर आगे के स्थान को प्राप्त करता है, इसी प्रकार नै रयिक भी पूर्ववर्ती भव को छोड़ कर अध्यवसायरूप कारण से आगामी भव को प्राप्त करते है। इत्यादि पच्चीसवें शतक के आठवें 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 950 (ख) श्रीमद्भगवती सूत्रम् खण्ड 4 (गुजराती-अनुवाद) पृ. 311 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org