________________ इकतीसवां शतक : उद्देशक 1] 12. खुड्डागदावरजुम्मनेरतिया णं भंते ! को उववज्जति ? एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे, नवरं परिमाणं दो वा, छ वा, दस वा, चोद्दस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा / सेसं तं चेव जाव अहेसत्तमाए / [12 प्र.] भगवन् ! क्षुद्रद्वापरयुग्म-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [12 उ.] गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसार इनका उत्पाद जानना चाहिए / किन्तु ये परिमाण में-दो, छह, दस, चौदह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत् यावत् अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना / 13. खुड्डागकलियोगनेरतिया गं भंते ! कतो उववज्जति ? एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे, नवरं परिमाणं एक्को वा, पंच वा, नव वा, तेरस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जति / सेसं तं चेव / [13 प्र.] भगवन् ! अद्रकल्योज-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [13 उ.] गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसार इनकी उत्पत्ति जाननी चाहिए। किन्तु ये परिमाण में-एक, पांच, नो, तेरह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं / शेष पूर्ववत् / 14. एवं जाव आहेसत्तमाए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरति / // इकतीसइमे सए : पढमो उद्देसनो समत्तो / / 31-1 // [14] इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // इकतीसवां शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org