________________ तीसवा शतक : उद्देशक ) 597 100. जहा सलेस्सा, एवं जाव सुक्कलेस्सा। [100] कृष्णलेश्यो (से लेकर) यावत् शुक्ललेश्यो पर्यन्त सलेश्यी के समान जानना। 101. अलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी कि भव० पुच्छा। गोयमा ! भवसिद्धीया, नो प्रभवसिद्धीया। |101 प्र.] भगवन् ! अलेश्यी क्रियावादी जीव भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक ? [101 उ.] गौतम ! वे भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं। 102. एवं एएणं अभिलावेणं कण्हपक्खिया तिसु वि समोसरणेसु भयणाए। [102] इस अभिलाप से कृष्णपाक्षिक तीनों समवसरणों (अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी) में भजना (विकल्प) से भवसिद्धिक हैं / 103. सुक्कपक्खिया चतुसु वि समोसरणेसु भवसिद्धीया, नो प्रभवसिद्धीया। [103] शुक्लपाक्षिक जीव चारों समवसरणों में भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं। 104. सम्मट्ठिी जहा अलेस्सा। [104] सम्यग्दृष्टि अलेश्यी जीवों के समान हैं / 105. मिच्छट्ठिी जहा कण्हपक्खिया। [105] मिथ्यादृष्टि जीव कृष्णपाक्षिक के सदृश हैं / 106. सम्मामिच्छद्दिट्ठी दोसु वि समोसरणेसु जहा अलेस्सा। | 106] सम्यमिथ्यादृष्टि जीव अज्ञानवादी और विनयवादी, इन दोनों समवसरणों में अलेश्यी जीवों के समान भवसिद्धिक हैं / 107. नाणी जाव केवलनाणी भवसिद्धीया, नो प्रभवसिद्धीया। {107] ज्ञानी (से लेकर) यावत् केवलज्ञानी तक भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं। 108. अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया। { 108] अज्ञानी (से लेकर) यावत् विभंगज्ञानी तक कृष्णपाक्षिकों के सदृश हैं। 106. सणासु चउसु वि जहा सलेस्सा / [106] चारों संज्ञाओं से युक्त जीवों का कथन सलेश्यी जीवों के समान है / 110. नोसण्णोवउत्ता जहा सम्मविट्ठी। [110] नोसंज्ञोपयुक्त जीवों का कथन सम्यग्दृष्टि के समान है। 111. सवेयगा जाव नपुसगवेयगा जहा सलेस्सा / [111] सवेदी (से लेकर) यावत् नपुसकवेदी जीव (तक) का कथन सलेश्यी जीवों के सदश है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org