________________ 588] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 41. तेउलेस्सा णं भंते ! जीवा अकिरियावादी कि नेरइयाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरतियाउयं पकरेंति, तिरिवन मोणियाउयं पि पकरेति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाज्यं पि पकरेंति / [41 प्र. भगवन् ! तेजोलेश्यी प्रक्रियावादी जीव नै रयिकायुप्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [41 उ.] गौतम ! वे नैरयिकायाय नहीं बांधते, किन्तु तिर्यञ्चायुप्य बांधते हैं, मनुप्यायुष्य और देवायुष्य भी बांधते हैं / 42. एवं अन्नाणियवाई वि, वेणइयवादी वि। [42] इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी के आयुष्य-बन्ध के विषय में जानना चाहिए / 43. जहा तेउलेस्सा एवं पम्हलेस्सा वि, सुक्कलेस्सा वि नेयत्वा / [43] जिस प्रकार तेजोलेश्यी के आयुष्य-बन्ध का कथन किया, उसी प्रकार पद्मल श्यी और शुक्ललेश्यी के आयुष्य बन्ध के विषय में जानना चाहिए। 44. अलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी कि रतियाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरतियाउयं पकरेंति, नो तिरि०, नो मणु०, नो देवाज्यं पकरेंति / [44 प्र.] भगवन् ! अलेश्यी क्रियावादी जीव नै रयिकायुप्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत प्रश्न / [44 उ.] गौतम ! नरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव, किसी का श्रायुष्य नहीं बांधते / 45. काहपविखया णं भंते ! जीवा अकिरियावाई कि नेरतियाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नेरइयाउयं पि पकरेंति, एवं चम्विहं पि। [45 प्र.] भगवन् ! कृष्णपाक्षिक प्रक्रियावादी जीव नेर यि कायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [45 उ.] गौतम ! बे नै र यिक, तिर्यञ्च प्रादि चारों प्रकार का प्रायुष्य बांधते हैं / 46. एवं प्रणाणियवादी वि, वेणइयवादी वि। [46] इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक अज्ञानवादी और विनयवादी जीवों के आयुष्यबन्ध के विषय में जानना चाहिए। 47. सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा। [47] शुक्लपाक्षिक जीव सले श्यी जीवों के समान आयुष्यबन्ध करते हैं। 48. सम्मट्ठिी णं भंते ! जीवा किरियाबाई कि नेइयाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिव खजोणियाउयं, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाउयं पि पकरेंति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org