________________ तीसवां शतक : उद्देशक 1] [589 [48 प्र.] भगवन् ! सम्यग्दृष्टि क्रियावादी जीव नैरयिकायुष्यबन्ध करते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [48 उ.] गौतम ! वे नैरयिकायुष्य एवं तिर्यञ्चायुष्य नहीं बांधते, किन्तु मनुष्य और देव का आयुष्य बांधते। 46. मिच्छट्ठिी जहा कण्हपक्खिया। [46] मिथ्यादृष्टि क्रियावादी जीव का अायुप्यबन्ध कृष्णपाक्षिक के समान है। 50. सम्मामिच्छट्ठिी णं भंते ! जीवा प्रनाणियवादी कि नेरइयाउयं० ? महा अलेस्सा। [50 प्र.] भगवन् ! सम्यगमिथ्यादृष्टि प्रज्ञानवादी जीव नैरयिकायुप्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [50 उ.} गौतम ! अलेश्यी जीव के समान कथन जानना / 51. एवं वेणइयवादी वि। {51] इसी प्रकार विनयवादी जीवों का प्रायुष्यबन्ध जानना चाहिए। 52. गाणो, प्राभिणिबोहियनाणी य सुयनाणी य मोहिनाणी य जहा सम्मट्टिी। [52] ज्ञानी, प्राभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अबधिज्ञानी के प्रायुष्यबन्ध का कथन सम्यग्दृष्टि के समान है। 53. [1] मणपज्जवनाणी णं भंते !0 पुच्छा। गोयमा ! नो नेरतियाउयं पकरेंति, नो तिरिक्ख०, नो मणुस्स०, देवाउयं पकरेंति / [53-1 प्र.] भगवन् ! मन:पर्यवज्ञानी नैरयिकायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [53-1 उ.] गौतम ! वे नै रचिक, तिर्यञ्च और मनुष्य का आयुष्य नहीं बांधते, किन्तु देव का आयुष्य बांधते हैं। [2] जदि देवाउयं पकरेंति किं भवणवासि० पुच्छा। गोयमा ! नो भवणवासिदेवाउयं पकरेंति, नो वाणमंतर०, नो जोतिसिय०, माणियदेवाउयं० / [53-2 प्र. भगवन् ! यदि वे देवायुष्य बांधते हैं. तो क्या भवनवासी देवायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [53-2 उ.] गौतम ! वे भवनवासी, वाणध्यन्त र अथवा ज्योतिाक का देवायुध्य नहीं बांधते, किन्तु वैमानिकदेव का प्रायुष्य वांधते हैं। 54. केवलनाणी जहा प्रलेस्सा। [54] केवलज्ञानी के विषय में अलेश्यी के समान वक्तव्यता जाननी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org