________________ तीसवां शतक : उद्देशक 1] 36. सलेस्सा णं भंते ! जोवा किरियावादी कि रतियाउयं पकरेंति० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरइयाउयं०, एवं जहेव जोवा तहेव सलेस्सा वि चउहि वि समोसरणेहि भाणियवा। [36 प्र.] भगवन् ! सलेश्यी क्रियावादी जीव नारकायुष्य बांधता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [36 उ.] गौतम ! वे नै रयिकायुष्य नहीं बांधते इत्यादि सब प्रोधिक जीव (के आयुष्यबन्धकथन) के समान सलेश्यी में चारों समवसरणों का (आयुष्यबन्ध) कथन करना चाहिए। 37. काहलेस्सा गं भंते ! जोवा किरियावादी कि नेरइयाउयं पकरेति० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्ख जोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। [37 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी क्रियावादी जीव, नैरयिक का प्रायुष्य वांधते हैं? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / 37 उ.] गौतम ! वे नैरयिकायुष्य, तिर्यञ्चायुष्य और देवायुष्य नहीं बांधते, किन्तु मनुष्यायुष्य बांधते हैं। 38. अकिरिया-अन्नाणिय-वेणइयवादो चत्तारि वि पाउयाई पकरेंति / / [38] कृष्णलेश्यो प्रक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी जीव, नैरयिक प्रादि चारों प्रकार का आयुष्य बांधते है / 36. एवं नीललेस्सा काउलेस्सा वि। J36] इसी प्रकार नीललेश्यी और कापोतलेश्यी क्रियावादी, (अक्रियावादी, अज्ञातवादी और विनयवादी जीवों के आयष्यवन्ध) के विषय में भी जानना चाहिए। 40. [1] तेउलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावादी कि नेरइयाउयं पकरेंति० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरतियाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणि 2, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाउयं पिपकरेंति। [४०-१प्र.] भगवन् ! तेजोलेश्यी क्रियावादी जोव नारकायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। [40-1 उ.] गौतम ! वे नैरयिकायुष्य एवं तिर्थञ्चायुष्य नहीं बांधते, किन्तु मनुष्यायुष्य बांधते हैं और देवायुष्य भी बांधते हैं। [2] जइ देवाउयं पकरेंति० / तहेव / [40.2 प्र.] भगवन् ! यदि वे (तेजोलेश्यी क्रियावादी जीव) देवायुष्य बांधते हैं तो क्या भवनवासी-देवायुष्य बांधते हैं, यावत् वैमानिक देवायुष्य वांधते हैं ? [40-2 उ.] पूर्ववत् अायुष्य-बन्ध करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org