________________ व्याख्याप्रज्ञाप्तसूत्र 35. सलेस्से णं भंते ! नेरतिए पावं कम्म? एवं चेव। 135 प्र.) भगवन् ! क्या सलश्य नैरयिक जीव ने पापकर्म बांधा था? इत्यादि चतुर्भगी. युक्त प्रश्न / [35 उ.] गौतम ! यहाँ भी पूर्ववत् पहला और दूसरा भंग जानना / 36. एवं कण्हलेस्से बि, नीललेस्से वि, काउलेस्से वि। [36] इसी प्रकार कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले जीव में भी प्रथम और द्वितीय भंग पाया जाता है / ____37. एवं कण्हपक्खिए, सुक्कपक्खिए; सम्मट्टिी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी; नाणी, प्राभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, प्रोहिनाणी; अन्नाणी, मतिमन्नाणी, सुयअन्नाणी, विभंगनाणी; पाहारसन्नोवउत्ते जाव परिग्गहसन्नो वउत्ते; सवेयए, नपुसकवेयए; सकसायी जाव लोभकसायी; सजोगी, मणजोगी, वडजोगी, कायजोगी: सागरोवउत्ते अणागारोवउत्ते। एएस सन्वेस पढ़मवितिया भंगा भाणियवा। 37 इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यमिथ्यादृष्टि, ज्ञानी, प्राभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, अज्ञानी, मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी, विभंगज्ञानी, आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त, सवेदी, नपुंसकवेदी, सकषायी यावत् लोभकषायी, सयोगी, मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी, साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त, इन सब पदों में प्रथम और द्वितीय भंग कहना चाहिए। 38. एवं असुरकुमारस्स वि वत्तव्वया भाणियव्वा / नयरं तेउलेस्सा, इस्थिवेयग-पुरिसवेयगा य प्रभहिया, नपुसगवेयगा न भण्णंति / सेसं तं चेव / सम्वत्थ पढम-बितिया भंगा। [38] असुर कुमारों के विषय में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि इनमें तेजोलेश्या वाले स्त्रीवेदक और पुरुषवेदक अधिक कहने चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जानना चाहिए। इन सबमें पहला और दूसरा भंग जानना चाहिए। 36. एवं जाव थणियकुमारस्स। [36] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिए / 40. एवं पुढविकाइयस्स वि, उकाइयस्स वि जाव पंचिदियतिरिक्खजोणियस्स वि, सम्वत्थ वि पढ़म-बितिया भंगा। नवरं जस्स जा लेस्सा, दिट्ठी, नाणं, अन्नाणं, वेदो, जोगो य, जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियध्वं / सेसं तहेव / [40] इसी प्रकार पृथ्वीकायिक, अप्कायिक यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक तक भी सर्वत्र प्रथम और द्वितीय भंग कहना चाहिए, किन्तु विशेष यह है कि जहाँ जिसमें जो लेश्या, जो दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान, वेद और योग हों, उसमें वही कहना चाहिए / शेष सब पूर्ववत् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org