________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 46. जीवे णं भंते ! वेयणिज्ज कम्मं कि बंधी० पुच्छा / गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी, बंधति, बंधिस्सति; अत्थेगतिए बंधी, बंधति, न बंधिस्सति; प्रत्यंगतिए बंधी, न बंधति, न बंधिस्सति / [46 प्र.] भगवन् ! क्या जीव ने वेदनीयकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [46 उ.] गौतम ! (1) किसी जीव ने (वेदनीय कर्म) बांधा था, बांधता है और बांधेगा, (2) किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा तथा (3) किसी जीव ने (वेदनीय कर्म) बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। 47. सलेस्से वि एवं चेव ततियविहूणा भंगा। [47] सलेश्य जीव में भी तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीन भंग पाये जाते हैं। 48. कण्हलेस्से जाव पम्हलेस्से पढम-बितिया भंगा। [48] कृष्णलेश्या वाले से लेकर यावत् पद्मलेश्या वाले जीव तक में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है। 46. सुक्कलेस्से ततियविहणा भंगा। [49] शुक्ललेश्या वाले में तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीन भंग पाये जाते हैं / 50. प्रलेस्से चरिमो। [50] अलेश्यजीव में अन्तिम (चतुर्थ) भंग पाया जाता है। 51. कण्हपक्खिए पढम-बितिया। [51] कृष्णपाक्षिक में प्रथम और द्वितीय भंग जानना चाहिए। 52. सुक्कयक्खिए ततियविहूणा। [52] शुक्लपाक्षिक में तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीनों भंग पाये जाते हैं / 53. एवं सम्माहिटिस्स वि। [53] इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि में भी ये ही तीनों भंग जानने चाहिए। 54. मिच्छद्दिहिस्स सम्मामिच्छादिष्टिस्स य पढम-बितिया / [54] मिथ्यादृष्टि और सम्यमिथ्यांदृष्टि में प्रथम और द्वितीय भंग जानना / 55. गाणिस्स ततियविहूणा। [55] ज्ञानी में तृतीय भंग को छोड़ कर शेष तीनों भंग समझने चाहिए। 56. आभिनिवोहियनाणी जाव मणपज्जवनाणी पढम-वितिया। [56] आभिनिबोधिक ज्ञानी (से लेकर) यावत् मनःपर्यवज्ञानी तक में प्रथम और द्वितीय भंग जानना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org