________________ छब्बीसवां शतक : उद्देशक 1] [529 अन्तिम दो (तीसरा, चौथा) भंग उनमें नहीं पाया जाता। कृष्णादि पांच लेश्यावाले जीवों में दूसरा भंग (बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा) इसलिए सम्भव है कि कालान्तर में क्षपकदशा प्राप्त होने पर वह नहीं बांधेगा / अलेश्यी जोब में सिर्फ एक चौथा भंग ही पाया जाता है, क्योंकि जीव अयोगीकेवली-अवस्था में अयोगी होता है तथा लेश्या के अभाव में (अलेश्यी) जीव प्रबन्धक (पुण्य-पापकर्म का बन्ध न करने वाला) होता है / ' तृतीय स्थान : कृष्ण-शुक्लपाक्षिक को लेकर पापकर्मबन्ध प्ररूपणा 10. कण्हपक्खिए णं भंते ! जीवे पावं कम्म० पुच्छा। गोयमा ! प्रत्थेगतिए बंधी०, पढम-बितिया भंगा। [10 प्र. भगवन् ! क्या कृष्णपाक्षिक जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा ? इत्यादि प्रश्न / [10 उ.] गौतम ! किसी जीव ने पापकर्म बंधा था; इत्यादि पहला और दूसरा भंग (इस विषय में जानना चाहिए। 11. सुक्कपक्खिए णं भंते ! जोवे० पुच्छा। गोयमा ! चउभंगो भाणियम्वो। [11 प्र] भगवन् ! क्या शुक्लपाक्षिक जीव ने पापकर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा? इत्यादि प्रश्न / [11 उ.] गौतम ! (इस विषय में) चारों ही भंग जानने चाहिए। विवेचन-कृष्णपाक्षिक और शुक्लपाक्षिक को परिभाषा जिन जीवों का संसार-परिभ्रमणकाल अर्द्ध पुद्गल-परावर्तन-काल से अधिक है, वे कृष्णपाक्षिक कहलाते हैं और जिन जीवों का संसार-परिभ्रमण-काल अर्द्ध पुद्गल-परावर्तन-काल से अधिक नहीं है; जो अर्द्ध पुद्गल-परावर्तन-काल के भीतर ही मोक्ष चले जाएँगे, वे शुक्लपाक्षिक कहलाते हैं। कृष्णपाक्षिक जीवों में प्रथम और द्वितीय ये दो भंग पाए जाते हैं, क्योंकि वर्तमानकाल में उन जीवों में पापकर्म को प्रबन्धकता नहीं है, इसलिए भविष्यकाल में भी उनके बंध तो चाल रहेगा। प्रश्न होता है--कृष्णपाक्षिक जीवों में 'बांधेगे नहीं', यह अंश असम्भव प्रतीत होता है तथा शुक्ल नोवो में 'बांधगे नहीं इस अश का अवश्य सम्भव होने से बांधगे इस अश से यूक्त प्रथम भंग क्यों नहीं घटित होता? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि शुक्लपाक्षिक जीवों में प्रश्न-समय के अनन्तर (तुरन्त पश्चात्) समय की अपेक्षा प्रथम भंग है तथा कृष्णपाक्षिक जीवों में शेष समयों की अपेक्षा दूसरा भंग घटित होता है। इस दृष्टि से शुक्लपाक्षिक जीवों में चारों ही भंगों की सम्भावना बताई गई है। प्रथम भंग तो प्रश्न-समय के अनन्तर तात्कालिक (प्रासन) भविष्यत्काल की अपेक्षा घटित होता है / दूसरा भंग भविष्यकाल में क्षपक- अवस्था को प्राप्ति की अपेक्षा घटित होता है। तीसरा भंग उन शुक्लपाक्षिक 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 929 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3549 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org