________________ 500 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विनय तप के भेद-प्रभेदों का निरूपरण 219. से कि तं विणए ? विणए सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा- नाणविणए 1 दंसणविणए 2 चरित्तविणए 3 मणविणए 4 बइविणए 5 कायविणए 6 लोगोवयारविणए 7 / [219 प्र.} (भगवन् ! ) विनय कितने प्रकार का है ? [216 उ.] (गौतम ! ) विनय सात प्रकार का कहा है / यथा---(१) ज्ञानविनय, (2) दर्शनविनय, (3) चारित्रविनय, (4) मनविनय, (5) वचन विनय, (6) कायविनय और (7) लोकोपचार विनय। 220. से कि तं नाणविणए ? नाणविणए पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा प्राभिनिबोहियनाणविणए जाव केवलनाणविणए / से तं नाणविणए। [220 प्र.] (भगवन् ! ) ज्ञानविनय कितने प्रकार का है ? [220 उ.] (गौतम !) ज्ञानविनय पाँच प्रकार का कहा है / यथा-आभिनिबोधिकज्ञानविनय यावत् केवलज्ञानविनय / यह है ज्ञानविनय / 221. से कि तं दंसणविणए ? दसणविणए दुविधे पन्नते, तं जहा—सुस्सूसणाविणए य प्रणच्चासायणाविणए य / [221 प्र.] (भगवन् ! ) दर्शनविनय कितने प्रकार का है ? / [221 उ.] (गौतम!) दर्शनविनय दो प्रकार का कहा है / यथा-शुश्रूषाविनय और अनाशातनाविनय। 222. से कि तं सुस्सूसणाविणए ? सुस्सूसणाविणए प्रणेगविधे पन्नत्ते, तं जहा-सक्कारेति वा सम्माणेति वा जहा चोहसमसए ततिए उद्देसए (स० 14 उ० 3 सु० 4) जाव पडिसंसाहणया / से तं सुस्सूसणाविणए / [222 प्र.] (भगवन् ! ) शुश्रूषाविनय कितने प्रकार का है ? [222 उ.] (गौतम ! ) शुश्रूषाविनय अनेक प्रकार का कहा है। यथा---सत्कार, सम्मान इत्यादि सब वर्णन चौदहवें शतक के तीसरे उद्देशक (के सूत्र 4) के अनुसार यावत् प्रतिसंसाधनता तक जानना चाहिए। 223. से कि तं अणच्चासादणाविणए ? अणच्चासादणाविणए पणयालीसतिविधे पन्नत्ते, तं जहा–अरहंताणं अणच्चासादणया, परहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स अणच्चासायणया 2 प्रायरियाणं अणच्चासादणया 3 उवज्झायाणं अणच्चासायणया 4 थेराणं प्रणच्चासायणया 5 कुलस्स अणच्चासायणया 6 गणस्स प्रणच्चासायगया 7 संघस्स अणच्चासादणया 8 किरियाए अणच्चासायणया 6 संभोगस्स अणच्चासायणया 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org