________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 1 (501 प्राभिनि इस प्रणच्चासायणया 11 जाव केवलनाणस्स प्रणच्चासायणया 12-13-14-15, एएसि चेव भत्तिबहुमाणे गं 15, एएसि चेव वणसंजलगया 15, - 45 / से तं प्रणच्चासायणाविणए / से तं दसणविगए। [223 प्र. (भगवन् ! ) अनाशातनाविनय कितने प्रकार का है ? 223 उ.J (गोतम ! ) अनाशातनाविनय पैतालीस प्रकार का कहा है / यथा--(१) अरिहन्तों की अनाशातना, (2) अरिहन्तप्रज्ञप्त धर्म की अनाशातना, (3) प्राचार्यों की अनाशातना, (4) उपाध्यायों की अनाशातना, (5) स्थविरों की अनाशातना, (6) कुल की अनाशातना, (7) गण की अनाशातना, (8) संघ की अनाशातना, (8) क्रिया की अनाशातना, (10) साम्भोगिक (सार्मिक साधु-साध्वीगण) की अनाशातना, (11 से 15 तक) आभिनिबोधिक ज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक की अनाशातना / इन पन्द्रह की (1) भक्ति करना, (2) बहुमान करना और (3) इनका गुण-कीर्तन करना, इस प्रकार कुल 154 3-45 भेद अनाशातनाविनय के हुए। यह हुआ अनाशातनाविनय का वर्णन / साथ ही दर्शनविनय का वर्णन भी पूर्ण हुआ। 224. से कितं चरित्तविणए ? चरित्तविणए पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा-सामाइयचरित्तविणए जाव प्रहक्खायचरित्तविणए। से तं चरित्तविणए। [224 प्र.] (भगवन् ! ) चारित्रविनय कितने प्रकार का है / {224 उ. (गौतम ! ) चारित्रविनय पांच प्रकार का कहा है। यथा-सामायिक चारित्रविनय (से लेकर) यावत् यथाख्यातचारित्रविनय / इस प्रकार चारित्रविनय का वर्णन हुआ / 225. से कि तं मणविणए ? मणविणए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा-पसत्थमणविणए य अप्पसत्यमणविणए य / [225 प्र.] वह मनोविनय कितने प्रकार का है ? 1225 उ.] मनोविनय दो प्रकार का कहा है। यथा--प्रशस्तमनोविनय और अप्रशस्तमनोविनय / 226. से कि तं पसत्थमणविणए ? पसत्थमणविणए सत्तविधे पन्नत्ते, तं जहा-अपाबए, असावज्जे, अकिरिए, निरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे, प्रभूयाभिसंकणे / से तं पसत्थमणविणए। [226 प्र.] वह प्रशस्त मनोविनय कितने प्रकार का है / 226 उ.] प्रशस्तमनोविनय सात प्रकार का बताया है। यथा--(१) अपापक (पापरहित), (2) असावद्य (क्रोधादि सावध - पापों से रहित), (3) अक्रिय (कायिकी आदि क्रियानों से रहित), (4) निरुपक्लेश-(शोकादि उपक्लेशों से रहित), (5) अनावकर (पाश्रवों से रहित), (6) अच्छविकर (स्वपर को पीड़ा न देने वाला) और (7) अभूताभिशंकित (जीवों को शंकित या भयभीत न करने वाला) Jain Education International . . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org