________________ 0 0 000 / पच्चीसवां शतक : उद्देशक 3] [307 श्रेणी-प्रायत संस्थान प्रदेशों की लम्बी श्रेणी को श्रेणी-पायत कहते हैं। जघन्य प्रोजप्रदेशी श्रेणी-प्रायत संस्थान तीन प्रदेशात्मक होता है-००० तथा युग्मप्रदेश श्रेणी-पायत द्विप्रदेशिक होता है-००। प्रतर-आयत : द्विविध--दो, तीन इत्यादि विष्कम्भ-श्रेणिरूप प्रतर-प्रायत कहलाता है / प्रोजप्रदेशिक प्रतर-आयत-जघन्य 15 प्रदेशों का है, यथा-:::::। और युग्मप्रदेशी प्रतर पायत 6 प्रदेशों का होता है---::। घन-आयत : द्विविध-मोटाई और विष्कम्भसहित अनेक श्रेणियों को घन-पायत कहते हैं / प्रोजप्रदेशिक घन-आयत पन्द्रह प्रकार के पूर्वोक्त प्रतर-आयत पर दूसरे दो उसी प्रकार के प्रतर-आयत रखने से जघन्य 45 प्रदेशों का प्रोजप्रदेशिक घनआयत होता है / यथा युग्मप्रदेशिक घन-प्रायत-छह प्रदेशों के युग्म प्रदेशिक प्रतर-पायत के ऊपर उसी प्रकार का दूसरा प्रतर-प्रायत रखने से 12 प्रदेशों का युग्मप्रदेशिक घन-पायत होता है परिमण्डल-संस्थान : द्विविध-युग्म-प्रदेशिक --- परिमण्डल-संस्थान केवल युग्म-प्रदेशिक होता है / इनमें से प्रतर-परिमण्डल जघन्य 20 प्रदेशों का होता है / यथा उसके ऊपर दूसरा प्रतर-परिमण्डल रखने से जघन्य 40 प्रदेशों का घन-परिमण्डल होता है।' यथापंच संस्थानों में एकत्व-बहुत्वदृष्टि से द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थता की अपेक्षा कृतयुग्मादि निरूपरण 42. परिमंडले गं भंते ! संठाणे वन्वट्ठताए कि कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलियोए ? गोयमा ! नो कडजुम्मे, णो तेयोए, णो वावरजुम्मे, कलियोए / [42 प्र.] भगवन् ! परिमण्डल-संस्थान द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म है, योज है, द्वापरयुग्म है अथवा कल्योज है ? [42 उ. | गौतम ! वह कृतयुग्म नहीं, योज नहीं, द्वापरयुग्म भी नहीं, किन्तु कल्योज है। 43. बट्टे णं भंते ! संठाणे दव्वटुताए ? एवं चेव। 1 (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 861.862 (ख) भगवती. (हिन्दी विये वन) भा. ७,पृ. 3228-3229 (ग) भगवती. उपक्रम (परिशिष्ट) पृ. 560-561 Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org