________________ [व्याल्याप्रज्ञप्तिसूत्र 56. एवं जाप सिणाए / [वारं] / [56] इसी प्रकार (बकुश से लेकर) यावत् स्नातक तक कहना चाहिए / [नौवाँ द्वार] विवेचन--लिंग : प्रकार और लक्षण-लिग दो प्रकार के होते हैं---द्रव्यलिंग और भावलिंग / सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र भावलिंग है / यह भावलिंग आहतधर्म (केवलिप्ररूपित धर्म) का पालन करने वालों में ही होता है / इस कारण वह (इस अपेक्षा से) स्वलिग कहलाता है / द्रव्यलिंग के दो भेद हैं स्वलिंग और अन्य (पर) लिंग। रजोहरणादि रखना इत्यादि द्रव्य से स्वलिंग है / परलिंग के दो भेद हैं-कुतीथिकलिंग और गृहस्थलिग / पुलाक में तीनों प्रकार के लिंग पाए जा सकते हैं, क्योंकि चारित्र का परिणाम किसी एक ही द्रव्यलिंग की अपेक्षा नहीं रखता।' रसधा शरीरद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में शरीर-भेद-प्ररूपरणा 60. पुलाए णं भंते ! कतिसु सरीरेसु होज्जा ? गोयमा ! तिसु पोरालिय-तेया-कम्मएसु होज्जा। [60 प्र. भगवन् ! पुलाक कितने शरीरों में होता है ? 60 उ.) गौतम ! वह औदारिक, तेजस और कार्मण, इन तीन शरीरों में होता है। 61. बउसे गं भंते !* पुच्छा। गोयमा ! तिसु वा चतुसु वा होज्जा। ति होमाणे तिसु पोरालिय-तेया-कम्मएसु होज्जा, बउसु होमाणे चउसु पोरालिय-वेउब्विय-तेया-कम्मएसु होज्जा। [61 प्र.] भगवन् ! बकुश कितने शरीरों में होता है ? [61 उ.] गौतम ! वह तीन या चार शरीरों में होता है / यदि तीन शरीरों में हो तो औदारिक, तेजस और कार्मण शरीर में होता है, और चार शरीरों में हो तो औदारिक, वैक्रिय, तेजस और कार्मण शरीरों में होता है। 62. एवं पडिसेवणाकुसीले वि। [62] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में समझना चाहिए / 63. कसायकुसीले० पुच्छा। गोयमा ! तिसु वा चतुसु वा पंचसु वा होज्जा। तिसु होमाणे तिसु पोरालिय-तेया-कम्मएसु होज्जा, चउसु होमाणे चउसु ओरालिय-वेउब्बिय-तेया-फम्मएसु होज्जा, पंचसु होमाणे पंचसु मोरालिय-उन्विय-प्राहारग-तेयग-कम्मएसु होज्जा। [63 प्र.] भगवन् ! कषायकुशील कितने शरीरों में होता है ? [63 उ.] गौतम ! वह तीन, चार या पांच शरीरों में होता है / यदि तीन शरीरों में हो तो औदारिक, तेजस और कार्मण शरीर में होता है, चार शरीरों में हो तो औदारिक, बैक्रिय, तेजस 1. श्रीमद्भगवती सूत्रम् खण्ड 4, पृ. 245 (गुजराती अनुवाद सहित) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org