________________ 428] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 156. सिणाए० पुच्छा / गोयमा ! एगविहबंधए वा, प्रबंधए वा। एगं बंधमाणे एगं वेदणिज्जं कम्मं बंधति / [दारं 21] / 1156 प्र.] भगवन् ! स्नातक कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है। [156 उ. गोतम ! वह एक कर्मप्रकृति बांधता है अथवा प्रवन्धक होता है। एक कर्मप्रकृति बांधता है तो वेदनीय कर्म बांधता है। [इक्कीसवाँ द्वार] विवेचन-निष्कर्ष-कर्मप्रकृतियाँ पाठ हैं - (1) ज्ञानावरणीय, (2) दर्शनावरणीय, (3) वेदनीय, (4) मोहनीय, (5) अायुष्य. (6) नाम, (7) गोत्र और (8) अन्तराय / पुलाक अवस्था में आयुष्य कर्म का बन्ध नहीं होता, क्योंकि उस अवस्था में उसके प्रायुष्यकर्म बन्ध के योग्य अध्यवसाय नहीं होते। पायुष्य के दो भाग बीत जाने पर तीसरे भाग में आयुष्य का बन्ध होता है, इसलिए आयुष्य के पहले के दो भागों में आयुष्य का बन्ध नहीं होता। अतएव बकुश आदि सात या आठ कर्मप्रकृतियों को बांधते हैं / कषायकशील सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान में प्रायुष्य नहीं बाँधता है, क्योंकि आयुष्य का बंध सातवें अप्रमत्त गुणस्थान तक ही होता है / कषायकुशील में बादरकषायों के उदय का अभाव होने से वह मोहनीयकर्म नहीं बांधता / इस दृष्टि से कहा गया है कि कषायकुशील आयु और मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियाँ बांधता है / निर्गन्थ योगनिमित्तक एकमात्र वेदनीयकर्म को ही बांधता है, क्योंकि कर्मबन्ध के हेतुओं में उसके केवल योग का ही सद्भाव होता है / स्नातक के अयोगी गुणस्थान में कर्मबन्ध के हेतु का अभाव होने से वह प्रबन्धक होता है।' बाईसवाँ द्वार : निर्ग्रन्थों में कर्मप्रकृति-वेदन-निरूपण 157. पुलाए णं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति ? गोयमा ! नियमं अट्ठ कम्मप्पगडीनो वेदेति / [157 प्र.] भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? [157 उ.] गौतम ! वह नियम से पाठों कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। 158. एवं जाव कसायकुसीले। [158] इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक कहना चाहिए / 156. नियंठे० पुच्छा। गोयमा ! मोहणिज्जवज्जानो सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेति / [156 प्र.] भगवन् ! निर्गन्थ कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? [156 उ.] गौतम ! वह मोहनीयकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। 1 (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 903-904 (ख) श्रीमद्भगवती सूत्रम् (गुजराती अनुवाद) चतुर्थखण्ड, पृ. 254 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org