________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 7] [457 [53 उ. ] गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा से (वह कर्मभूमि में होता है, अकर्मभूमि में नहीं, इत्यादि सब कथन उ. 6, सू. 66 में कथित) बकुश के समान जानना चाहिए / 54, एवं छेदोवद्वावणिए वि। [54] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत का कथन है / 55. परिहारविसुद्धिए य जहा पुलाए (उ० 6 सु० 65) / [55] परिहारविशुद्धिक संयत के विषय में (उ. 6, सू. 65 में उक्त) पुलाक के समान जानना। 56. सेसा जहा सामाइयसंजए। [वारं 11] / [56] शेष (सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत) के विषय में सामायिकसंयत के समान जानना / [ग्यारहवाँ द्वार] बारहवाँ कालद्वार : पंचविध संयतों में अक्सपिरणीकालादि की प्ररूपरणा 57. सामाइयसंजए णं भंते ! कि प्रोसप्पिणिकाले होज्जा, उस्सप्पिणिकाले होज्जा, नोमोसप्पिणि-नोउस्सप्पिणिकाले होज्जा ? गोयमा ! ओसप्पिणिकाले जहा बउसे (उ० 6 सु० 66) / [57 प्र.) भगवन् / सामायिकसंयत अवपिणीकाल में होता है, उत्सपिणीकाल में होता है, या नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है ? [57 उ.] गौतम ! वह अवसर्पिणीकाल में होता है, इत्यादि सब कथन (उ. 6 सू. 69 में उक्त) बकुश के समान है। 58. एवं छेदोवट्ठावणिए वि, नवरं जम्मण-संतिभावं पडुच्च चउसु वि पलिभागेसु नत्थि, साहरणं पडुच्च अन्नयरे पलिभागे होज्जा / सेसं तं चेव / [58] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी समझना चाहिए / विशेष यह है कि जन्म और सदभाव की अपेक्षा चारों पलिभागों (सुषम-सुषमा, सुषमा, सुषम-दु:षमा और दुःषमसुषमा) में नहीं होता, संहरण की अपेक्षा किसी भी पालिभाग में होता है / शेष पूर्ववत् है / 56. [1] परिहारविसद्धिए० पुच्छा। गोयमा ! प्रोसप्पिणिकाले वा होज्जा, उस्सप्पिणिकाले वा होज्जा, नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणिकाले नो होज्जा। [59-1 प्र.] भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत अवसर्पिणीकाल में होता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [56-1 उ.) गौतम ! वह अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में भी होता है, किन्तु नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणोकाल में नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org