________________ সিনি [146 उ.] गौतम ! (उ, 6, सू. 163 में उक्त) बकुश के समान उसके आकर्ष होते हैं। 150. छेदोवट्ठावणियस्स० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं दोन्नि, उक्कोसेणं उरि नवण्हं सयाणं अंतोसहस्सस्स / [150 प्र.] भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत के अनेक भवों में कितने आकर्ष होते हैं ? [150 उ.] गौतम ! उसके जघन्य दो और उत्कृष्ट नौ सौ से ऊपर और एक हजार के अन्दर प्राकर्ष होते हैं। 151. परिहार विसुद्धियरस जहन्नेणं दोनि, उक्कोसेणं सत्त। [151] परिहारविशुद्धिकसंयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट सात आकर्ष कहे हैं। 152. सुहुमसंपरागस्स जहन्नेणं दोनि, उक्कोसेणं नव / [152] सूक्ष्मसम्परायसंयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट नौ प्राकर्ष होते हैं / 153. अहमखायस्स जहन्नेणं दोन्नि, उक्कोसेणं पंच / [दारं 28] / [153] यथाख्यातसंयत के जघन्य दो और उत्कृष्ट पांच आकर्ष होते हैं। [अट्ठाईसवाँ द्वार विवेचन-पंचविध संयतों के आकर्ष--आकर्ष का यहाँ अर्थ है- चारित्र (संयम) की प्राप्ति / अर्थात् एक भव में या अनेक भवों में अमुक संयत कितनी बार उक्त संयम को प्राप्त कर सकता है ? यह प्रश्न का आशय है / कतिपय संयतों के विषय में कथन स्पष्ट है / छेदोपस्थापनीयसंयत के उत्कृष्ट प्राकर्ष एक भव में बीस पृथक्त्व कहे हैं, उसका मतलब हैछह बीसी यानी 120 बार उक्त चारित्र प्राप्त होता है। परिहारविशुद्धिकसंयम एक भव में उत्कृष्ट तीन बार प्राप्त हो सकता है। सूक्ष्मसाम्परायसंयत के एक भव में दो बार उपशमश्रेणी की सम्भावना होने से तथा प्रत्येक श्रेणी में संक्लिश्यमान और विशुद्धयमान ये दो प्रकार होने से, एक भव में उत्कृष्ट चार बार सूक्ष्मसम्परायत्व की प्राप्ति घटित होती है। यथाख्यातसंयत के दो बार उपशमश्रेणी की सम्भावना होने से दो आकर्ष (दो बार चारित्र-प्राप्ति) हो सकते हैं। छेदोपस्थापनीयसंयत के अनेक भवों में उत्कृष्ट नौ सौ से ऊपर और एक हजार से कम आकर्ष होते हैं। वे इस प्रकार घटित होते हैं--छेदोपस्थापनीयसंयत के उत्कृष्ट पाठ भव होते हैं। उसके एक भव में छह बीसी (अर्थात् 120 बार) आकर्ष होते हैं / इस दृष्टि से आठ भवों में 12048 - 960 आकर्ष हो जाते हैं। यह अपेक्षा सम्भावना-मात्र की अपेक्षा से बताई गई है। इसके अतिरिक्त अन्य रीति से 600 से ऊपर संख्या घटित हो जाए, इस प्रकार घटित कर लेना चाहिए। परिहारविशुद्धिकसंयत के एक भव में उत्कृष्ट तीन बार परिहारविशुद्धिकसंयम की प्राप्ति हो सकती है। यह संयम (चारित्र) तीन भव तक प्राप्त हो सकता है। इसलिए एक भव में तीन बार, दूसरे भव में दो बार और तीसरे भव में दो बार, इत्यादि विकल्प से उसके अनेक भव में सात आकर्ष घटित होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org