________________ 492] ( মোসাদেমু षष्ठभक्त (बेला), अष्टम-भक्त (तेला), दशम-भक्त (चौला), द्वादशभक्त (पचौला), चतुर्दशभक्त (छहउपवास), अर्द्धमासिक (15 दिन के उपवास), मासिकभक्त (मासखमण---एक महीने के उपवास)द्विमासिकभक्त, त्रिमासिक भक्त यावत् पाण्मासिक भक्त / यह इत्वरिक अनशन है / 200. से कि तं प्रावकाहिए ? आवकहिए दुविधे पन्नत्ते तं जहा-पाग्रोवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य / 200 प्र. भगवन् ! यावत्कथिक अनशन कितने प्रकार का कहा गया है ? [270 उ.] गौतम ! बह दो प्रकार का कहा गया है / यथा--पादोपगमन और भक्तप्रत्याख्यान / 201. से किं तं पापोवगमणे? पानोवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा-नीहारिमे य, अनीहारिमे य, नियम अपडिकम्मे / से तं पाओवगमणे। [201 प्र.] भगवन् ! पादोपगमन कितने प्रकार का कहा गया है ? [201 उ.] गौतम ! पादपोपगमन दो प्रकार का कहा गया है। यथा-निर्झरिम और अनिर्हारिम / ये दोनों नियम से अप्रतिकर्म होते हैं / यह है---पादपोषगमन / 202. से किं तं भत्तपच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविधे पन्नत्ते, तं जहा-नीहारिमे य, अनीहारिमे य, नियमं सपडिक्कम्मे / से तं प्रावकहिए / से तं अणसणे / [202 प्र.] भगवन् ! भक्तप्रत्याख्यान अनशन क्या है ? [202 उ.] भक्तप्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है, यथा-निर्झरिम और अनिर्झरिम / यह नियम से सप्रतिकर्म होता है / इस प्रकार यावत्कथिक अनशन और साथ ही अनशन का निरूपण पूरा हुआ। विवेचन--अनशन के कतिपय प्रकारों की संज्ञा और उनके विशेषार्थ-अनशन का सामान्यतया अर्थ है-पाहार का त्याग करना / इसके दो भेदों में इत्वरिक अनशन का अर्थ है-अल्पकाल के लिए किया जाने वाला अनशन / प्रथम तीर्थंकर के शासन में एक वर्ष, मध्य के बाईस तीर्थंकरों के शासन में आठ मास और अन्तिम तीर्थंकर के शासन में उत्कृष्ट 6 मास तक का इत्वरिक अनशन होता है / इसके चतुर्थभक्त आदि अनेक भेद हैं / चतुर्थभक्त उपवास की, षष्ठभक्त बेले की, मभक्त तेले की (तीन उपवास की) संज्ञा है / इसी प्रकार आगे भी समझना चाहिए / यावत्कथिक अनशन यावज्जीवन का होता है। उसके दो भेद हैं—पादपोपगमन और भक्तप्रत्याख्यान / पादोपगमन का अर्थ है-कटे हुए वृक्ष की तरह अथवा वृक्ष की कटी डाली के समान शरीर के किसी भी अंग को किन्चित मात्र भी नहीं हिलाते हए अशन-पान-खादिम-र प्रकार के आहार का त्याग करके निश्चलरूप से संथारा करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org