________________ [ হাসমি ( 46 उ.] गौतम ! इसका सभी कथन ( उ. 6. सू. 48 में उक्त) पुलाक के समान जानना / 47. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। [47] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी जानना चाहिए / 48. परिहारविसुद्धियसंजए णं भंते ! कि० पुच्छा। गोयमा ! दलिगं पि भालिगं पि पडुच्च सलिगे होज्जा, नो अनलिगे होज्जा, नो गिहिलिगे होज्जा। [48 प्र.] भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत स्वलिंग में होता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ! [48 उ.] गौतम ! वह द्रव्यलिंग और भावलिंग की अपेक्षा स्वलिंग में ही होता है, अन्यलिंग या गृहस्थलिंग में नहीं होता। 46, सेसा जहा सामाझ्यसंजए / [दारं] / [49] शेष ( सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत का) कथन मामायिकसंयत के समान जानना चाहिए / नौवाँ द्वार] विवेचन--सामायिकसंयत, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत सम्बन्धी लिंग-विषयक प्रश्न में पुलाक का अनिदेश किया गया है, परिहारविशुद्धिकसंयत द्रव्य-भावलिंग की अपेक्षा स्वलिंग में ही होता है। दसवाँ शरीरद्वार : पंचविध संयतों में शरीरभेद-प्ररूपणा 50. सामाइयसंजए णं भंते ! कतिसु सरीरेसु होज्जा ? गोयमा ! तिसु वा चतुसु वा पंचसु वा जहा कसायकुसीले (उ० 6 सु० 63) / / 50 प्र. भगवन् ! सामायिकसंयत कितने शरीरों में होता है ? [50 उ.] गौतम ! वह तीन, चार या पांच शरीरों में होता है, इत्यादि सब कथन (उ, 6, सू. 63 में उक्त) कषायकुशील के समान जानना चाहिये। 51. एवं छेदोवढावणिए वि। | 51] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत के विषय में भी जानना चाहिए / 52. सेसा जहा पुलाए (उ० 6 सु०६०)। [वार 10] / [52] शेष परिहारविशुद्धिक, सूक्ष्मसम्पराम और यथाख्यात संयत का शरीर-विषयक कथन (उ. 6 मू. 60 में कथित) पुलाक के समान जानना / दसवाँ द्वार] ग्यारहवाँ क्षेत्रवार : पंचविध संयतों में कर्म-अकर्मभूमि की प्ररूपरणा 53. सामाइयसंजए गं भंते ! कि कम्मभूमीए होज्जा, अकम्मभूमीए होज्जा ? गोयमा ! जम्मणं संतिभावं च पडच्च जहा बउसे (उ० 6 सु०६६)। [53 प्र. ] भगवन् ! सामायिकसंयत कर्मभूमि में होता है या अकर्मभूमि में ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org