________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक ) [2] देवति गच्छमाणे कि भवणवासीसु उयवज्जेज्जा जाव वेमागिएस उयवज्जेग्जा? गोयमा ! नो भवणवासीसु उववज्जेज्जा जहा कसायकुसीले (उ० 6 सु० 76) [62-2 प्र.] भगवन् ! वह देवगति में जाता हुअा (सामायिकसंयत) भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में से किन देवों में उत्पन्न होता है ? [62-2 उ.) गौतम ! वह (उ. 6, सू.७६ में कथित) कषायकुशील के समान भवनपति में उत्पन्न नहीं होता, इत्यादि सब कहना। 63. एवं छेदोवट्ठावणिए वि। [63] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी समझना चाहिए / 64. परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए (उ० 6 सु०७३)। [64] परिहारविशुद्धि कसंयत की गति (उ. 6, सू. 73 में उल्लिखित) पुलाक के समान जानना चाहिए। 65. सुहुमसंपराए जहा नियंठे (उ० 6 सु०७६) / [65] सूक्ष्मसम्परायसंयत की गति (उ. 6, सू. 77 में कथित) निर्ग्रन्थ के समान जानना चाहिए। 66. अहक्खाते० पुच्छा। गोयमा ! एवं प्रहक्खायसंजए वि जाव प्रजहन्नमणुक्कोसेणं अणुत्तरविमाणेसु उववज्जेज्जा, प्रत्थेगइए सिज्झति जाव अंतं करेति / [66 प्र.] भगवन् ! यथाख्यातसंयत कालधर्म प्राप्त कर किस गति में जाता है ? [66 उ. गौतम ! यथाख्यातसंयत भी पूर्वकथनानुसार अजघन्यानुस्कृष्ट अनुत्तरविमान में उत्पन्न होता है और कोई सिद्ध हो जाता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। 67. सामाइयसंजए णं भंते ! देवलोगेसु उववज्जमाणे कि इंदत्ताए उववज्जति० पुच्छा। गोयमा ! अविराहणं पडुच्च एवं जहा कसायकुसीले (उ० 6 सु० 82) / [67 प्र. भगवन् ! देवलोकों में उत्पन्न होता हुआ सामायिकसंयत क्या इन्द्ररूप से उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न / [67 उ.] गौतम ! अविराधना की अपेक्षा (उ. 6, सू. 82 में कथित) कषायकुशील के समान जानना। 68. एवं छेदोबट्टायणिए वि। 168] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में जानना / 66. परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए (उ० 6 सु० 79) / [66] परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन पुलाक के समान जानना चाहिए। Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org