________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 7] [465 सोलहवाँ योगद्वार : पंचविध संयतों में योग-प्ररूपणा 64. सामाइयसंजए णं भंते ! कि सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा ? गोयमा ! सजोगी जहा पुलाए (उ० 6 सु० 117) / [94 प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत सयोगी होता है अथवा अयोगी ? [94 उ.] गौतम ! वह सयोगी होता है; इत्यादि सब कथन (उ. 6, सू. 117 में उक्त) पुलाक के समान जानना चाहिए। 65. एवं जाव सुहुमसंपरयसंजए। [65] इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्परायसंयत तक समझना चाहिए / 66. अहक्खाए जहा सिणाए। (उ०६ सु० 120) [दारं 16] / |.96] यथाख्यातसंयत का कथन (उ. 6, सू. 120 में कथित) स्नातक के समान है / | सोलहवाँ द्वार] सत्तरहवाँ उपयोगद्वार : पंचविध संयतों में उपयोग-निरूपण 67. सामाइयसंजए णं भंते ! कि सागारोवउत्ते होज्जा, अणागारोवउत्ते होज्जा? गोयमा ! सागारोवउत्ते जहा पुलाए (उ० 6 सु० 122) / [97 प्र.] भगवन् ! समायिकसंयत, साकारोपयोगयुक्त होता है अथवा अनाकारोपयोगयुक्त ? [97 उ.] गौतम ! वह साकारोपयोगयुक्त होता है, इत्यादि कथन पुलाक के समान जानना। . 68. एवं जाव प्रहक्खाए, नवरं सुहमसंपराए सागारोवउत्ते होज्जा, नो प्रणागारोवउत्ते होज्जा [दारं 17] / [98] इसी प्रकार यावत् यथाख्यातसंयत-पर्यन्त कहना चाहिए; किन्तु सूक्ष्मसम्पराय केवल साकारोपयोग-युक्त हो होता है, अनाकारोपयोग-युक्त नहीं। [सत्तरहवाँ द्वार] विवेचन-उपयोग : किसमें कौन सा ?--सामायिक अादि चार संयतों में साकारोपयोग और अनाकारोपयोग दोनों ही उपयोग होते हैं, किन्तु सक्ष्मसम्परायसंयत में एकमात्र साकारोपयोग ही होता है। क्योंकि सक्षमसम्परायसंयत साकारोपयोग में ही दसवें गणस्थान में प्रविष्ट होता है और साकारोपयोग का समय पूर्ण होने से पूर्व ही वह दसवें गुणस्थान को छोड़ देता है / इस गुणस्थान का स्वभाव ही ऐसा है / ' अठारहवाँ कषायद्वार : पंचविध संयतों में कषाय-प्ररूपणा 66. सामाइयसंजए णं भंते ! कि सकसायी होज्जा, प्रकसायी होज्जा ? गोयमा! सकसायी होज्जा, नो अकसायो होज्जा, जहा कसायकुसोले (उ० 6 सु० 126) / 14. भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 214 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org