________________ 466] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [66 प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत सकषायी होता है अथवा अकषायी ? [66 उ.] गौतम ! वह सकषाय होता है, अकषाय नहीं; इत्यादि (उ. 6, सू. 126 में कथित) कषायकुशील के समान जानना चाहिए। 100. एवं छेदोवट्ठावणिये वि / [१००इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय भी समझना / 101. परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए (उ० 6 सु० 124) / [101] परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन (उ. 6, सू. 124 में उक्त) पुलाक के समान है। 102. सुहुमसंपरागसंजए० पुच्छा। गोयमा! सकसायी होज्जा, नो अकसायी होज्जा / [102 प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत सकषाय होता है अथवा अकषाय ? {102 उ.] गौतम ! वह सकषाय होता है, किन्तु अकषाय नहीं होता / 103. जदि सकसायी होज्जा, से णं भंते ! कतिसु कसाएसु होज्जा? गोयमा ! एगंसि संजलणे लोभे होज्जा। [103 प्र.] भगवन् ! यदि वह सकषाय होता है तो उसमें कितने कषाय होते हैं ? [103 उ.] गौतम ! उसमें एकमात्र संज्वलनलोभ होता है। 104. अहक्खायसंजए जहा नियंठे (उ० 6 सु० 130) / [दारं 18] / [104] यथाख्यातसंयत का कथन (उ. 6, सू. 130 में उक्त) निर्ग्रन्थ के समान है। [अठारहवां द्वार] विवेचन-निष्कर्ष-यथाख्यातसंयत के सिवाय सभी संयत सकषाय होते हैं। सूक्ष्मसम्परायसंयत सकषाय तो होता है किन्तु उसमें एकमात्र संज्वलन लोभ होता है। यथाख्यातसंयत अकषाय होता है / उनमें कई उपशान्तकषाय होते हैं; कई क्षीणकषाय होते हैं।' उन्नीसवाँ लेश्याद्वार : पंचविध संयतों में लेश्याप्ररूपण 105. सामाइयसंजए णं भंते ! कि सलेस्से होज्जा, अलेस्ले होज्जा? गोयमा ! सलेस्से होज्जा, जहा कसायकुसीले (उ० 6 सु० 137) / [105 प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत सलेश्य होता है अथवा अलेश्य ? [105 उ.] गौतम ! वह सलेश्य होता है, इत्यादि वर्णन (उ. 6, सू. 137 में कथित) कषायकुशील के समान जानना / 106. एवं छेदोवट्ठावणिए वि / 6106J इसी प्रकार छेदोपस्थापनीसंयत के विषय में कहना चाहिए। 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं ( मू. पा. टि.), पृ. 1051 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org