________________ पच्चीसथां गतक : उद्देशक 6] [441 [216 प्र.] भगवन् ! निर्गन्थ के कितने समुद्घात कहे हैं ? [219 उ.] गौतम ! उसमें एक भी समुद्घात नहीं होता। 220. सिणायस्स० पुच्छा। गोयमा ! एगे केवलिसमुग्धाते पन्नत्ते / [दारं 31] / [220 प्र.] भगवन् ! स्नातक के कितने समुद्घात कहे हैं ? [220 उ.] गौतम ! उसमें केवल एक केवलिसमुद्घात होता है। [इकतीसवाँ द्वार] / विवेचन-किसमें कितने समुद्घात और क्यों ? सात समुद्घातों में से पुलाक में तीन समुद्घात होते हैं। मुनियों में संज्वलनकषाय के उदय से कषायसमुद्घात पाया जाता है। इस कारण पुलाक में वेदनासमुद्घात के बाद कषायसमुद्घात भी सम्भव है / यद्यपि पुलाक-अवस्था में मरण नहीं होता, तथापि पुलाक में मारणान्तिकसमुद्घात होता है; क्योंकि मारणान्तिकसमुद्घात से निवृत्त होने पर कषायकुशीलत्वादि परिणाम के सद्भाव में उसका मरण होता है / अतः पुलाक में मारणान्तिकसमुद्घात का सद्भाव कहा गया है / निग्रन्थ में एक भी समुद्घात नहीं होता; क्योंकि उसका स्वभाव ही ऐसा है। पहले समुद्घात किया हुआ हो तो वह निर्गन्थपने में प्राकर काल कर सकता है / स्नातक केवली होने से उनमें केवलिसमुद्घात ही पाया जाता है।' बत्तीसवाँ क्षेत्रद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में अवगाहनाक्षेत्र-प्ररूपरण 221. पुलाए गं भंते ! लोगस्स कि संखेज्जतिभागे होज्जा, असंखेज्जतिभागे होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, सव्वलोए होज्जा ? गोयमा ! नो संखेज्जतिभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो प्रसंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो सव्वलोए होज्जा। {221 प्र.] भगवन् ! पुलाक लोक के संख्यातवें भाग में होते हैं, असंख्यातवें भाग में होते हैं, संख्यातभागों में होते हैं, असंख्यातभागों में होते हैं या सम्पूर्ण लोक में होते हैं ? (221 उ.] गौतम ! वह लोक के संख्यातवें भाग में नहीं होते, किन्तु असंख्यातवें भाग में होते हैं, संख्यातभागों में, असंख्यातभागों में या सम्पूर्ण लोक में नहीं होते हैं ? 222. एवं जाव नियंठे। [222] इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ तक समझ लेना चाहिए। 223. सिणाए णं भंते ! 0 पुच्छा। गोयमा ! णो संखेज्जतिभागे होज्जा, असंखेज्जतिभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, सवलोए वा होज्जा। [दारं 32] / [223 प्र.] भगवन् ! स्नातक लोक के संख्यातवें भाग में होता है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / 1. (क) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3425 (ख) भगवती. अ, बत्ति, पत्र 907 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org