________________ पचीसवां शतक : उद्दशक 6) 226. एवं जाव कसायकुसीले। [226 प्र.] इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक जानना / 227. नियंठे० पुच्छा। गोयमा ! अोयसमिए वा खइए वा भावे होज्जा। [227 प्र.] भगवन् ! निम्रन्थ किस भाव में होता है ? .. [227 उ.] गौतम ! वह औपशमिक या क्षायिक भाव में होता है / 228, सिणाये० पुच्छा / गोयमा ! खइए भावे होज्जा। [दारं 34] / [228 प्र.] भगवन् ! स्नातक किस भाव में होता है ? [228 उ.] गोतम ! वह क्षायिक भाव में होता है / [चौतीसवाँ द्वार] विवेचन–निष्कर्ष-पुलाक से लेकर कषायकुशील तक क्षायोपशमिक भाव में होते हैं, निम्रन्थ औपशमिक अथवा क्षायिक भाव में और स्नातक एकमात्र क्षायिक भाव में होते हैं।' पैतीसवाँ परिमाणद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों का एक समय का परिमाण 226. पुलाया गं भंते ! एगसमएणं केवतिया होज्जा ? गोयमा! परिवजमाणए पडच्च सिय अस्थि, सिय नस्थि / जति प्रतिष महन्नेणं एक्को वा दो वा तिलि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं / पुण्यपडिवानए पडच्च सिय अस्थि, सिय स्थिति प्रत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सहस्सयुहत्तं / [226 प्र.] भगवन् ! पुलाक एक समय में कितने होते हैं ? [229 उ.] गौतम ! प्रतिपद्यमान (पुलाकत्व को प्राप्त होते हुए) की अपेक्षा पुलाक कदाचित् होते हैं और कदाचित नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं। पूर्वप्रतिपन्न (पहले ही उस अवस्था को प्राप्त किये हुए) की अपेक्षा भी पुलाक कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते / यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथकत्व होते हैं / 230. बसा गं भंते ! एगसमएणं० पुच्छा। गोयमा! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अस्थि, सिय नत्थि / जदिपस्थि जहानेणं एक्को वापो का तिनि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं। पुब्धपडियनए पच्च जहन्ने कोस्सियपुहत्तं, उक्कोसेण वि कोडिसयपुहत्तं / [230 प्र.] भगवन् ! बकुश एक समय में कितने होते हैं ? (230 उ.] गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा बकुश कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं भी होते / यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं। पूर्वप्रतिपश्न की अपेक्षा बकुश जघन्य और उत्कृष्ट कोटिशतपृथक्त्व होते हैं। 1. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भाग 7, पृ. 3428 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org