________________ 452] (व्याख्याप्रमप्तिसूत्र 25. सेसा जहा नियंठे (उ० 6 सु० 27) [दारं 4] / [25] शेष दो--सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन (उ.६, सू. 27 में उक्त) 'निर्गन्थ' के समान समझना चाहिए। (चतुर्थ द्वार] विवेचन-अस्थितकल्प और स्थितकल्प-मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों के तीर्थ में और महाविदेह क्षेत्र के तीर्थकरों के तीर्थ में अस्थितकल्प होता है / वहाँ छेदोपस्थापनीय और परिहारविशुद्धिचारित्र नहीं होता, इसलिए छेदोपस्थापनीयसंयत और परिहारविशुद्धिकसंयत अस्थितकल्प में नहीं होते / ' पंचम चारित्रद्वार : पंचविध संयतों में पुलाकादि-प्ररूपणा 26. सामाइयसंजए णं भंते ! कि पुलाए होज्जा, बउसे जाव सिणाए होज्जा ? गोयमा ! पुलाए वा होज्जा, बउसे जाव कसायकुसीले वा होज्जा, नो नियंठे होज्जा, नो सिणाए होज्जा। [26 प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत पलाक होता है, अथवा बकुश, यावत् स्नातक होता है ? [26 उ.} गौतम ! वह पुलाक, बकुश यावत् कषायकुशील होता है, किन्तु न तो 'निर्ग्रन्य' होता है, और न स्नातक / 27. एवं छेदोवढावणिए वि। [27] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय के विषय में जानना चाहिए। 28. परिहार विसुद्धियसंजते णं भंते !* पुच्छा। गोयमा ! नो पुलाए, नो बउसे, नो पडिसेवणाकुसोले होज्जा, कसायकुसीले होज्जा, नो नियंठे होज्जा, नो सिणाए होज्जा। [28 प्र.] भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत क्या पुलाक होता है, यावत् स्नातक होता है ? [28 उ.] गौतम ! वह पुलाक, बकुश प्रतिसेवनाकुशील, निर्ग्रन्थ या स्नातक नहीं होता, किन्तु कषायकुशील होता है / 26. एवं सुहमसंपराए वि। [26] इसी प्रकार सूक्ष्मसम्परायसंयत के विषय में भी समझना चाहिए। 30. अहक्खायसंजए० पुच्छा। गोयमा ! नो पुलाए होज्जा, जाव नो कसायकुसोले होज्जा, नियंठे वा होज्जा, सिणाए वा होज्जा / [दारं 5] / [30 प्र.] भगवन् ! यथाख्यातसंयत क्या पुलाक यावत् स्नातक होता है ? [30 उ.] गौतम ! वह पुलाक यावत् कषायकुशील नहीं होता, किन्तु निन्थ या स्नातक होता है / [पंचमद्वार 1. (क) भगवती. म. वृत्ति, पत्र 911 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org