________________ [प्याल्याप्रकाप्तिसूक [6 प्र.] भगवन् ! यथारूयात-संयत कितने प्रकार का कहा गया है ? [6 उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा-छद्मस्थ और केवली / संयत-स्वरूप 7. सामाइयम्मि उ कए चाउज्जामं अणुत्तरं धम्म / तिविहेण फासयंतो सामाइयसंजयो स खलु // 1 // 8. छेत्तूण य परियागं पोराणं जो ठवेइ प्रप्पाणं / धम्मम्मि पंचनामे छेदोवट्ठावणो स खलु // 2 // 1. परिहरति जो विसुद्धं तु पंचजामं प्रणुत्तरं धम्म। तिविहेण फासयंतो परिहारियसंजयो स खलु // 3 // 10. लोभाणु वेदेतो जो खलु उवसामग्रो व खवनो वा। सो सुहमसंपराओ अहखाया ऊणो किंचि // 4 // 11. उबसंते खोणम्मि व जो खलु कम्मम्मि मोहणिज्जम्मि। छउमस्थो व जिणो वा अहलाओ संजो स खलु // 5 // [दारं 1] / सामायिक-चारित्र को अंगीकार करने के पश्चात् चातुर्याम-(चार महावत-) रूप अनुत्तर (प्रधान) धर्म का जो मन, बचन और काया से विविध (तीन करण से) पालन करता है, वह 'सामायिक-संयत' कहलाता है / / 1 / / प्राचीन (पूर्व) पर्याय को छेद करके जो अपनी आत्मा को पंचयाम-(पंचमहानत-) रूप धर्म में स्थापित करता है, वह 'छेदोपस्थापनीय-संयत' कहलाता है / / 2 / / ____ जो पंचमहाव्रतरूप अनुत्तर धर्म को मन, वचन और काया से विविध पालन करता हुअा (अमुक) प्रात्म-विशुद्धि (कारक तपश्चर्या) धारण करता है, वह परिहारविशुद्धिक-संयत कहलाता है / / 3 / / जो सूक्ष्म लोभ का वेदन करता हुआ (चारित्रमोहनीय कर्म का) उपशमक (उपशमकर्ता) होता है, अथवा क्षपक (क्षयकर्ता) होता है, वह सूक्ष्मसम्पराय-संयत होता है / यह यथाख्यात-संयत से कुछ हीन होता है / / 4 / / मोहनीय कर्म के उपशान्त या क्षीण हो जाने पर जो छद्मस्थ या जिन होता है, वह यथाख्यातसंयत कहलाता है / / 5 / / प्रथम द्वार] विवेचन-पंचविध संयत : स्वरूप, प्रकार और विश्लेषण--शास्त्र में चारित्र के सामायिक आदि 5 भेद बताए हैं / अत: जो सामायिक प्रादि चारित्रों के पालक है, वे सामायिक आदि ‘संयत' कहलाते हैं / सामायिक का प्रस्तुत में अर्थ है---सामायिक नामक चारित्र-विशेष, उससे युक्त अथवा वह जिसमें प्रधान रूप से है, वह संयमी पुरुष सामायिकसंयत कहलाता है / सामायिकचारित्री दो प्रकार के होते हैं-इत्वरिक और यावत्कथिक / इत्वर का अर्थ है-अल्पकाल / चारित्र (दीक्षा) ग्रहण करने के बाद भविष्य में उक्त (नव) दीक्षित साधु में जब तक महाव्रतों का प्रारोपण नहीं होता तब तक तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org