________________ पच्चीसवां शतक : उद्द शक 6) विवेचन-शंका-समाधान-सुनते हैं, सर्व संयतों (साधुओं) का परिमाण (संख्या) कोटिसहस्र-पृथक्त्व है और यहाँ तो शास्त्रकार ने केवल कषाय कुशील मुनियों का ही इतना (कोटि-सहस्रपृथक्त्व) परिमाण बताया है, उनमें पुलाक आदि की संख्या को मिलाने से तो कोटि-सहस्र-पृथक्त्व से अधिक संख्या हो जाएगी तो क्या यह पूर्वोक्त परिमाण से विरोध नहीं ? इसका समाधान यह है कि कषायकुशील संयतों का जो कोटि-सहस्र-पृथक्त्व परिमाण बताया है, वह दो, तीन कोटि सहस्र-पृथक्त्वरूप जानना चाहिए। उसमें पुलाक, बकुशादि की संख्या को मिला देने पर भी समस्त संयतों की जो संख्या बतायी है, उससे अधिक नहीं होगी / अर्थात् सर्व संयतों का परिमाण भी कोटिसहस्र-पृथक्त्व ही होगा।' छत्तीसवाँ अल्पबहुत्वद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में अल्पबहुत्व प्ररूपण ___ 235. एएसि णं भंते ! पुलाग-बउस-पडिसेवणाकसील-कसायकसील-नियंठ-सिणायाणं कयरे कयरेहितो जाय विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा नियंठा, पुलागा संखेज्जगुणा, सिणाया संखेज्जगणा, बउसा संखेज्जगुणा, पडिसेवणाकुसोला संखेज्जगुणा, कसायकसोला संखेन्जगुणा। [दारं 36] / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरह। // पंचवीसइमे सए : छटो उद्देसओ समत्तो॥ / 235 प्र.] भगवन् ! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवनाकुशील, कषायकुशील, निम्रन्थ और स्नातक, इनमें से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? [235 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े निम्रन्थ हैं, उनसे पुलाक संख्यात-गुणे हैं, उनसे स्नातक संख्यात-गुणे हैं, उनसे बकुश संख्यात-गुणे हैं, उनसे प्रतिसेवनाकुशील संख्यात-गुणे हैं और उनसे कपायकुशील संख्यात-गुणे हैं। [छत्तीसवाँ द्वार] हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है। यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन--प्रल्पबहुत्व की संगति-निर्ग्रन्थ सबसे अल्पसंख्यक हैं, क्योंकि उनकी उत्कृष्ट संख्या शत-पृथक्त्व है। उनसे पुलाक और स्नातक क्रमशः उत्तरोत्तर संख्यातगुण हैं; क्योंकि इन दोनों की उत्कृष्ट संख्या क्रमशः सहस्रपृथक्त्व और कोटिपृथक्त्व है। उनसे बकुश और प्रतिसेवनाकुशील दोनों क्रमश: उत्तरोत्तर संख्यातगुण हैं, क्योंकि इन दोनों की उत्कृष्ट संख्या कोटिशतपृथक्त्व है और प्रतिसेवनाकुशील से कषायकुशील की संख्या संख्यातगुणी है, क्योंकि कषायकुशील की उत्कृष्ट संख्या कोटिसहस्रपृथक्त्व है। शंका-समाधान--पूर्वसूत्रों में बकुश और प्रतिसेवनाकुशील, इन दोनों का परिमाण एक-सा कोटिशतपृथक्त्वरूप कहा है, जबकि यहां अल्पबहुत्व में बकुश से प्रतिसेवनाकुशील को संख्यातगुणा 1. (क) भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 907 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भाग 7, पृ. 3431 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org