________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 6] 175. एवं पडिसेवणाकुसीले वि / {175] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में भी समझना चाहिए। 176. एवं कसायकुसीले वि। [176] कषायकुशील के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। 177. नियंठे सिगाए य जहा पुलाए। [दारं 25] / 177] निर्ग्रन्थ और स्नातक को पुलाक के समान नो-संज्ञोपयुक्त कहना चाहिए / [पच्चीसवां द्वार _ विवेचन-संज्ञोपयुक्त-नो-संज्ञोपयुक्त : स्वरूप और विश्लेषण-संज्ञा का अर्थ यहाँ प्राहार-भयमैथुन-परिग्रह संज्ञा है, उसमें उपयुक्त अर्थात् पाहारादि में प्रासक्ति वाला संज्ञोपयुक्त होता है, जबकि अाहारादि का उपभोग करने पर भी उनमें आसक्ति-रहित जीव नो-संज्ञोपयुक्त कहलाता है / पुलाक, निम्रन्थ और स्नातक नो-संज्ञोपयुक्त होते हैं, क्योंकि उनकी आहारादि में प्रासक्ति नहीं होती / बकुश, प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील दोनों ही प्रकार के होते हैं। यहाँ शंका होती है कि निम्रन्थ और स्नातक तो वीतराग होने से नो-संज्ञोपयुक्त ही होते हैं, किन्तु पुलाक सराग होने से नो-संज्ञोपयक्त कैसे हो सकता है ? इसका समाधान यह है कि सराग होने पर भी आसक्तिरहितता सर्वथा नहीं होती, ऐसी बात नहीं है / बकुशादि सराग होने पर भी संज्ञा (आसक्ति)-रहित बताये गए हैं / चूणिकार के मतानुसार नो-संज्ञा का अर्थ है- ज्ञानसंज्ञा / इस दृष्टि से पुलाक, निम्रन्थ और स्नातक नोसंज्ञोपयुक्त हैं, अर्थात् ज्ञानप्रधान उपयोग वाले हैं, किन्तु पाहारादि संज्ञोपयुक्त नहीं होते / बकुशादि तो नो-संज्ञोपयुक्त और संज्ञोपयुक्त, दोनों प्रकार के होते हैं, क्योंकि उनके इसी प्रकार के संयमस्थानों का सद्भाव होता है।' छवीसवाँ ग्राहारद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में प्राहारक-अनाहारक-निरूपण 178. पुलाए णं भंते ! कि आहारए होज्जा, प्रणाहारए होज्जा। गोयमा ! आहारए होज्जा, नो प्रणाहारए होज्जा / [178 प्र.] भगवन् ! पुलाक आहारक होता है, अथवा अनाहारक होता है ? (178 उ.] गौतम ! वह ग्राहारक होता है, अनाहारक नहीं / 176. एवं जाव नियंठे। [179] इसी प्रकार यावत् निम्रन्थ तक कहना चाहिए। 180. सिणाए० पुच्छा। गोयमा ! आहारए वा होज्जा, प्रणाहारए वा होज्जा। [दारं 26] / [180 प्र. भगवन् ! स्नातक ग्राहारक होता है, अथवा अनाहारक ? [180 उ.] गौतम ! वह आहारक भी होता है और अनाहारक भी। [छठवीसवाँ द्वार] 1. भगवती अ. वृत्ति, पत्र 905 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org