________________ पंसोमवां शतक : उद्देशक 6 कठिन शब्दार्थ ...आगरिसा आकर्ष- चारित्रप्राप्ति / सयग्गसो-सकड़ों, शत-पृथक्त्व / सहस्तगसो सहस्रों, सहस्रपृथक्त्व / ' उनतीसवाँ कालद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में स्थितिकाल-निरूपण 167. पुलाए णं भंते ! कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुत्तं / [197 प्र.] भगवन् ! पुलाकत्व काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है। [ 167 उ. गौतम ! वह जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त तक रहता है। 198. बउसे० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुठनकोडो। [198 प्र.] भगवन् ! बकुशत्व कितने काल तक रहता है ? [198 उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि वर्ष तक रहता है। 199. एवं पडिसेवणाकुसीले वि, कसायकुसीले वि। [196] इसी प्रकार प्रतिसेवनाशील और कषायकुशील के विषय में भी समझना चाहिए। 200. नियंठे पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं / [200 प्र.] भगवन् ! निर्गन्थत्व कितने काल तक रहता है ? [200 उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। 201. सिणाए० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुब्धकोडी। [201 प्र.] भगवन् ! स्नातकत्व कितने काल तक रहता है ? [201 उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटिवर्ष तक रहता है। 202. पुलाया णं भंते ! कालमो केवचिरं होंति ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं अंतोमुहतं / [202 प्र.] भगवन् ! पुलाक (बहुत) कितने काल तक रहते हैं ? [202 उ.] गौतम ! वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त तक रहते हैं। 203. बउसा णं भंते ! * पुच्छा। गोयमा ! सम्बद्धं / 1203 प्र.] भगवन् ! बकुश (बहुत) कितने काल तक रहते हैं ? [203 उ.] गौतम ! वे सर्वाद्धा-सर्वकाल रहते हैं। 1. भगवतीसूत्र (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3415-16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org