________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 6) 435 है / अत: बकुश आदि के लिए जघन्य एक भव और उत्कृष्ट पाठ भव कहे हैं, क्योंकि उत्कृष्टतः आठ भवों तक चारित्र की प्राप्ति होती है। इनमें से कोई साधक तो आठ भव बकुशपन और उनमें अन्तिम भव सकषायत्वादियुक्त बकुशपन से पूरा करता है और कोई प्रत्येक भव प्रतिसेवनाकुशीलत्वादियुक्त बकुशपन से पूरा करता है और फिर उसी भव में मोक्ष चला जाता है।' अट्ठाईसवाँ आकर्षद्वार : एकभव-नानाभवग्रहरणीय आकर्ष-प्ररूपणा 187. पुलागस्स गं भंते ! एगभवागहणिया केवतिया भागरिसा पन्नता? गोयमा ! जहन्नेणं एकको, उक्कोसेणं तिण्णि / [187 प्र.] भगवन् ! पुलाक के एक भव-ग्रहण-सम्बन्धी प्राकर्ष (चारित्र-प्राप्ति) कितने कहे हैं ? [187 उ.] गौतम ! उसके जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन अाकर्ष होते हैं। 188. बउसस्स गं० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं सयग्गसो। [188 प्र.] भगवन् ! बकुश के एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? [18 उ.] गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट सैकड़ों (शत-पृथक्त्व) आकर्ष होते हैं / 16. एवं पडिसेवणाकुसीले वि, कसायकुसीले वि। [189] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील के विषय में भी जानना चाहिए। 190. णियंठस्स पं० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं एक्को, उपकोसेणं वोनि / [190 प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ के एक भव में कितने पाकर्ष होते हैं ? [160 उ.] गोतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट दो अाकर्ष होते हैं। 161. सिणायस्स णं० पुच्छा। गोयमा ! एक्को। 161 प्र.] भगवन् ! स्नातक के एक भव में कितने प्राकर्ष होते हैं ? 1161 उ.] गौतम ! उसके एक ही पाकर्ष होता है / / 162. पुलागस्स णं भंते ! नाणाभवागहणिया केवतिया प्रागरिमा पन्नता ? गोयमा ! जहन्नेणं दोण्णि, उक्कोसेणं सत्त / [162 प्र.) भगवन् ! पुलाक के नाना-भव-ग्रहण-सम्बन्धी आकर्ष कितने होते है ? [192 उ.] गौतम ! जघन्य दो और उत्कृष्ट सात आकर्ष होते हैं / 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 905 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org