________________ 404] [व्याख्याज्ञप्तिसूब जन्म, सद्भाव और संहरण-जन्म और सद्भाव (चारित्रभाव के अस्तित्व) की अपेक्षा पुलाक कर्मभूमि में होते हैं, अर्थात् पुलाक की उत्पत्ति कर्मभूमि में ही होती है और चारित्र अंगीकार करके वह यहीं विचरता है। वह अकर्मभूमि में उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि वहाँ पैदा हुए मनुष्य को चारित्र (संयम) की प्राप्ति नहीं होती। अतएव वहाँ उसका सद्भाव (चारित्र का अस्तित्व) भी नहीं होता / संहरण (देवादि द्वारा एक स्थान से उठा कर दूसरे स्थान पर ले जाने) की अपेक्षा भी वह अकर्मभूमि में नहीं होता, क्योकि पुलाकलब्धि वाले का देवादि कोई भी संहरण नहीं कर सकते / बकुश अकर्मभूमि में जन्म से नहीं होता, न ही स्वकृतविहार से होता है, परकृत विहार (संहरण) की अपेक्षा वह कर्मभूमि में भी होता है, अकर्मभूमि में भी।' बारहवाँ कालद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में अवपिरणो-उत्सर्पिणीकालादि-प्ररूपणा 68. [1] पुलाए णं भंते ! कि प्रोसप्पिणिकाले होज्जा, उस्सप्पिणिकाले होज्जा, नोमोसप्पिणिनोउस्सरिपणिकाले होज्जा? गोयमा ! ओसप्पिणिकाले वा होज्जा, उस्सप्पिणिकाले वा होज्जा, नोनोसप्पिणिनोउस्सप्पिणिकाले वा होज्जा। [68-1 प्र.] भगवन् ! पुलाक अवपिणीकाल में होता है, उत्सपिणीकाल में होता है, अथवा नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है ? [68-1 उ.] गौतम ! पुलाक अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में भी होता है तथा नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में भी होता है। [2] जदि प्रोसप्पिणिकाले होज्जा कि सुसमसुसमाकाले होज्जा, सुसमाकाले होज्जा, सुसमदुस्समाकाले होज्जा, दुस्समसुसमाकाले होज्जा, दुस्समाकाले होज्जा, दुस्समदुस्समाकाले होज्जा? गोयमा ! जम्मणं दडुच्च नो सुसमसुसमाकाले होज्जा, नो सुसमाकाले होज्जा, सुसमदुस्समाकाले वा होज्जा, दुस्समससमाकाले वा होज्जा, नो दुस्समाकाले होज्जा, नो दुस्समदुस्समाकाले होज्जा। संतिभावं पडुच्च नो सुसमसुसमाकाले होज्जा, नो सुसमाकाले होज्जा, सुसमदुस्समाकाले वा होज्जा, दुस्समसुसमाकाले वा होज्जा, दुस्समाकाले वा होज्जा, नो दूसमदूसमाकाले होज्जा। 668-2 प्र.] यदि पुलाक अवसर्पिणीकाल में होता है, तो क्या वह सुषम-सुषमाकाल में होता है अथवा सुषमाकाल में, सुषम-दुःषमाकाल में. दुःषम-सुषमाकाल में, दुःषमकाल में होता है अथवा दुःषम-दुःषभाकाल में होता है ? 68-2 उ.] गौतम! (पुलाक) जन्म की अपेक्षा सुषम-सुषमा और सुषमाकाल में नहीं होता, किन्तु सुषम-दुःषमा और दुःषम-सुषमाकाल में होता है तथा दुःषमाकाल एवं दुःषम-दुःषमाकाल में वह नहीं होता। सद्भाव की अपेक्षा वह सुषम-सुषमा, सुषमा तथा दुःषम-दुःषमाकाल में नहीं होता, किन्तु सुषम-दुःषमा, दुःषम-सुषमा एवं दुःषमाकाल में होता है। 1. भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 896 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org