________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भी बकुश के समान है। पुलाक से बकुश अधिक कहा है, किन्तु यहाँ पर कषायकुशील, पुलाक के साथ हीनादि षट्स्थानपतित कहना चाहिए। क्योंकि उसके परिणाम पुलाक की अपेक्षा हीन, तुल्य और अधिक होते हैं।' सोलहवाँ योगद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में योगों की प्ररूपणा 117. पुलाए णं भंते ! कि सजोगो होज्जा, अजोगी होज्जा ? गोयमा! सजोगी होज्जा, नो अजोगी होज्जा। [117 प्र.] भगवन् ! पुलाक सयोगी होता है या अयोगी ? [117 उ.] गौतम ! वह सयोगी होता है, अयोगी नहीं। 116. जति सजोगी होज्जा कि मणजोगी होज्जा, वइजोगी होज्जा, कायजोगी होज्जा ? गोयमा ! मणजोगी वा होज्जा, वइजोगी वा होज्जा, कायजोगी वा होज्जा। [118 प्र.] भगवन् ! यदि वह सयोगी होता है तो क्या वह मनोयोगी होता है, वचनयोगी होता है या काययोगी होता है ? [118 उ.] गौतम ! वह मनोयोगी होता है, वचनयोगी होता है, काययोगी भी होता है / 116, एवं जाव नियंठे। [116] इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ तक जानना चाहिए / 120. सिणाए गं० पुच्छा। गोयमा ! सजोगी वा होज्जा, अजोगी वा होज्जा। [120 प्र.] भगवन् ! स्नातक सयोगी होता है या अयोगी ? [120 उ.] गौतम ! वह सयोगी भी होता है और अयोगी भी होता है / 121. जदि सजोगी होज्जा कि मणजोगी होज्जा ? सेसं जहा पुलागस्स / [वारं 16] / [121 प्र.] भगवन् ! यदि वह सयोगी होता है तो क्या मनोयोगी होता है ? इत्यादि प्रश्न / [121 उ.] इसका समाधान पुलाक के समान है / [सोलहवां द्वार] विवेचन-निष्कर्ष-पुलाक से लेकर निम्रन्थ तक सयोगी--विशेषतः तीनों योग वाले होते हैं, जबकि स्नातक सयोगी और अयोगी दोनों प्रकार के होते हैं। शैलेशी अवस्था के पहले तक वे सयोगी होते हैं तथा शैलेशी अवस्था में प्रयोगी बन जाते हैं। सत्तरहवा उपयोगद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में उपयोग-प्ररूपरणा 122. पुलाए गं भंते ! कि सागारोवउत्ते होज्जा, अणागारोवउत्ते होज्जा ? गोयमा ! सागारोवउत्ते वा होज्जा, अणागारोवउत्ते वा होज्जा। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 901 2. भगवती. (हिन्दी विवेचन) बही, भा. 7, पृ. 3393 -..-. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org