________________ 424] प्याल्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन --पंचविध निग्रन्थों में लेश्या का रहस्य-पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील, ये तीनों तीन विशुद्ध लेश्याओं में होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि भावलेश्या की अपेक्षा ये तीनों तीन प्रशस्त लेश्याओं (तेजो, पद्म और शुक्ल) में होते हैं। कषायकुशील के विषय में मूलपाठ में छह लेश्याएं बताई हैं / वृत्तिकार का मन्तव्य इस सम्बन्ध में यह है कि इनमें कृष्णादि तीन लेश्याएँ तो मात्र द्रव्यलेश्याएँ हैं, किन्तु इनमें द्रव्यलेश्या भी छह और भावलेश्या भी छह समझनी चाहिए। इनमें द्रव्य और भावरूप छहों लेश्याएँ किस प्रकार घटित होती हैं, इसका स्पष्टीकरण भगवती. प्रथम शतक के प्रथम और द्वितीय उद्देशक के विवेचन में किया गया है। स्नातक में एकमात्र परम शुक्लध्यान बताया गया है, उसका आशय यह है कि शुक्लध्यान के तीसरे भेद के समय ही एक परम शुक्ललेश्या होती है, दूसरे समय में तो उसमें शुक्ललेश्या ही होती है, किन्तु वह शुक्ललेश्वा दूसरे जीवों की शुक्ललेश्या की अपेक्षा परम शुक्ललेश्या होती है / बोसवाँ परिणामद्वार : वर्धमानादि परिणामों की प्ररूपणा 143. पुलाए णं भंते ! कि बड़माणपरिणामे होज्जा, हायमाणपरिणामे होज्जा, प्रवट्टियपरिणामे होज्जा ? गोयमा ! बड्डमाणपरिणामे वा होज्जा, हायमाणपारिणामे वा होज्मा, प्रवट्टियपरिणामे वा होज्जा। [143 प्र. भगवन् ! पुलाक, वर्द्धमान-परिणामी होता है, होयमान-परिणामी होता है अथवा अवस्थित-परिणामी होता है ? [143 उ.] वह वर्द्धमानपरिणामी भी होता है, हीयमाणपरिणामी भी अवस्थितपरिणामी भी होता है ? 144. एवं जाव कसायकुसीले / [144] इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक जानना चाहिए / 145. नियंठे० पुच्छा। गोयमा ! वष्टमाणपरिणामे होज्जा, नो हायमाणपरिणामे होज्जा, अवट्टियपरिणामे वा होज्जा। [145 प्र.] भगवन् ! निग्रन्थ किस परिणाम वाला होता है ? इत्यादि पृच्छा / {145 उ.] गौतम ! वह वर्द्धमान और अवस्थित परिणाम वाला होता है, किन्तु होयमानपरिणामी नहीं होता। ---- 1. भगवतो. अ. वत्ति, पत्र 902 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org