________________ [व्याखयाप्रजस्तिसूत्र [18 प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय अवगाढ है या अनवगाढ है ? [18 उ.] गौतम ! वह अवगाढ है, अनवगाढ नहीं / 16. अदि प्रोगाढे कि संखेज्जपएसोगाढे, असंखेज्जपएसोगाढे, प्रणंतपएसोगाढे ? गोयमा ! नो संखेज्जपएसोगाढे, असंखेज्जपएसोगाढे, नो अणंतपएसोगाढे। [16 प्र.] भगवन् ! यदि वह (धर्मास्तिकाय) अवगाढ है, तो संख्यात-प्रदेशावगाढ है, असंख्यात-प्रदेशावगाढ है अथवा अनन्त-प्रदेशावगाठ है ? 616 उ.] गौतम ! वह संख्यात-प्रदेशावगाढ नहीं और अनन्त-प्रदेशावगाढ भी नहीं, किन्तु असंख्यातप्र-देशावगाढ़ है। 20. जदि प्रसंखेज्जपएसोगा कि कडजुम्मपदेसोगाढे० पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्मपएसोगाढे, नो तेयोग०, नो दावरजुम्म०, नो कलियोगपएसोगाढे / [20 प्र. भगवन् ! यदि वह असंख्यात-प्रदेशावगाढ है, तो क्या कृतयुग्म प्रदेशावगाढ है ? इत्यादि प्रश्न / [20 उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ है, किन्तु न तो योज-प्रदेशावगाढ है, न द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ है और न कल्योज-प्रदेशावगाढ है / 21. एवं अधम्मस्थिकाये वि। [21] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के विषय में समझना चाहिए। 22. एवं प्रागासस्थिकाये वि। [22] अाकाशास्तिकाय के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। 23. जीवत्थिकाये पोग्गलस्थिकाये अद्धासमये एवं चेव / [23] जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय (काल) के विषय में भी यही वक्तव्यता है। 24. इमा णं भंते ! रयणप्पभापुढयो कि प्रोगाढा, अणोगाढा ? जहेव धम्मस्थिकाये। {24 प्र. भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी अवगाढ है या अनवगाढ ? [24 उ.] गौतम ! धर्मास्तिकाय के समान इसकी वक्तव्यता कहनी चाहिए। 25. एवं जाव अहेसत्तमा। [25] इसी प्रकार (शर्कराप्रभा से ले कर) यावत् अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना चाहिए। 26. सोहम्मे एवं चेव। [26] सौधर्म देवलोक के विषय में भी यही कथन करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org