________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 14. [1] कसायफुसीले णं भंते ! कि सवेयए० पुच्छा। गोयमा ! सवेयए वा होज्जा, अवेयए वा होज्जा। {14-1 प्र.] भगवन् ! कषायकुशील सबेदी होता है, या अवेदी? [14-1 उ.] गौतम ! वह सवेदी भी होता है और अवेदी भी। [2] जइ अवेयए कि उवसंतवेयए, खीणवेयए होज्जा ? गोयमा ! उवसंतवेयए वा, खीणवेयए बा होज्जा। __ [14-2 प्र.] भगवन् ! यदि वह अवेदी होता है तो क्या वह उपशान्तवेदी होता है, अथवा क्षीणवेदी। [14-2 उ.] गौतम ! वह उपशान्तवेदी भी होता है और क्षीणवेदी भी। [3] जति सवेयए होज्जा कि इत्थिवेदए होज्जा० पुच्छा। गोयमा ! तिसु वि जहा बउसो। [14-3 प्र. भगवन् ! यदि वह सवेदी होता है तो क्या स्त्रीवेदी होता है ? इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न। [14-3 उ.] गोतम ! बकुश के समान तीनों ही वेदों में होते हैं / 15. [1] णियंठे गं भंते ! कि सवेयए० पुच्छा / गोयमा ! नो सवेयए होज्जा, अवेदए होज्जा। [15-1 प्र.] भगवन ! निम्रन्थ सवेदी होता है, या अवेदी ? | 15-1 उ.। गौतम ! वह सवेदी नहीं होता, किन्तु अवेदी होता है। . [2] जइ प्रवेयए होज्जा कि उवसंत० पुच्छा। गोयमा ! उवसंतवेयए वा होज्जा, खीणवेयए वा होज्जा। [15-2 प्र.] भगवन् ! यदि निर्ग्रन्थ अवेदी होता है, तो क्या वह उपशान्तवेदी होता है, या क्षीणवेदी? (15-2 उ.] गौतम ! वह उपशान्तवेदी भी होता है और क्षीणवेदी भी / 16. सिणाए णं भंते ! कि सवेयए होज्जा० ? जहा नियंठे तहा सिणाए वि, नवरं नो उवसंतवेयए होज्जा, खीणवेयए होज्जा। [दारं 2] / [16 प्र.| भगवन् ! स्नातक सवेदी होता है, या अवेदी ? इत्यादि (पूर्ववत् दोनों) प्रश्न / {16 उ.] गौतम ! निर्ग्रन्थ के समान स्नातक भी अवेदो होता है; किन्तु वह उपशान्तवेदी नहीं होता, क्षीणवेदी होता है। [द्वितीय द्वार] विवेचन-पांचों प्रकार के निर्ग्रन्थों में वेद का विचार-पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील में उपशमथेणी या क्षपकश्रेणी नहीं होती इसलिए वे अवेदी नहीं होते / पुलाकलब्धि स्त्री को नहीं होती, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org