________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 6] [391 रहित / सम्पूर्ण काययोग का सर्वथा निरोध कर लेने पर स्नातक सर्वथा निष्कम्प एवं क्रियाहित हो जाता है, अत: उसके कर्मबन्ध का प्रवाह सर्वथा रुक जाता है। इस कारण वह अपरिस्रावी होता है। किसी भी वृत्तिकार ने स्नातक के इन अवस्थाकृत भेदों की व्याख्या नहीं की है, इसलिए सम्भव है कि इन्द्र, शक्र, पुरन्दर आदि के समान इन के ये भेद केवल शब्दकृत हैं।' द्वितीय वेदद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में स्त्रीवेदादि प्ररूपरणा 11. [1] पुलाए णं भंते ! कि सवेयए होज्जा ? गोयमा ! सवेयए होज्जा, नो अवेयए होज्जा। |11-1 प्र.] भगवन् ! पुलाक सवेदी होता है, अथवा अवेदी ? / 11-1 उ.] गौतम ! वह सवेदी होता है, अवेदी नहीं / [2] जइ सवेयए होज्जा कि इथिवेयए होज्जा, पुरिसवेयए होज्जा, पुरिसनपुंगवेयए होज्जा?। गोयमा! नो इस्थिवेयए होज्जा, पुरिसवेयए होज्जा, पुरिसनपुससगवेयए वा होज्जा। [11-2 प्र.] भगवन् ! यदि पुलाक सवेदी होता है, तो क्या वह स्त्रीवेदी होता है, पुरुषवेदी होता है या पुरुष-नपुंसकवेदी होता है ? [11-2 उ.] गौतम ! वह स्त्रीवेदी नहीं होता, या तो वह पुरुषवेदी होता है, या पुरुषनपुंसकवेदी होता है। 12. [1] बउसे गं भंते ! कि सवेयए होज्जा, अवेयए होज्जा ? गोयमा ! सवेदए होज्जा, नो अवेदए होज्जा। {12-1 प्र.] भगवन् ! बकुश सवेदी होता है, या अवेदी ? [12-1 उ.] गौतम ! बकुश सवेदी होता है, अवेदी नहीं। [2] जइ सबेयए होज्जा कि इथिवेयए होज्जा, पुरिसधेयए होज्जा, पुरिसनपुसगवेयए होज्जा ? गोयमा ! इस्थिवेदए वा होज्जा, पुरिसवेयए वा होज्जा, पुरिसनपुंसगवेयए वा होज्जा। [12-2 प्र. भगवन् ! यदि बकुश सवेदी होता है तो क्या वह स्त्रीवेदी होता है, पुरुषवेदी होता है, अथवा पुरुष-नपुंसकवेदी होता है ? _ [12-2 उ.] गौतम ! वह स्त्रीवेदी भी होता है, पुरुषवेदी भी अथवा पुरुष-नपुंसकवेदी भी होता है। 13. एवं पडिसेवणाकुसोले वि। [13] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में जानना चाहिए / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 891-892 (ख) श्रीमद्भगवतीसूत्रम् नतुर्थ खण्ड (गुजराती अनुवाद), पृ. 240-241 (ग) भगवती-उपक्रम, पृ. 601, 602, 603 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org