________________ [ध्यास्याप्रज्ञप्तिसूत्र क्योंकि छद्मस्थ तीर्थकर सकषायी होने से कल्पातीत होने से हए भी कषायकशील होते हैं। निर्ग्रन्थ और स्नातक ये दोनों कल्पातीत ही होते हैं, उनमें जिनकल्प या स्थविरकल्पधर्म नहीं होते / ' पंचम चारित्रद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में चारित्र-प्ररूपरणा 26. पुलाए गं भंसे ! कि सामाइयसंजमे होज्जा, छेदोवढावणियसंजमे होज्जा, परिहारविसुद्धियसंजमे होज्जा, सुहमसंपरायसंजमे होज्जा, अहक्खायसंजमे होज्जा ? गोयमा ! सामाइयसंजमे वा होज्जा, छेदोवट्ठावणियसंजमे वा होज्जा, नो परिहारविसुद्धिसंजमे होज्जा, नो सुहमसंपरायसंजमे होज्जा, नो अहक्खायसंजमे होज्जा। [26 प्र.] भगवन् ! पुलाक सामायिकसयम में, छेदोपस्थापनिकसंयम, परिहारविशुद्धिसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम में अथवा यथाख्यातसंयम में होता है ! [29 उ.] गौतम ! वह सामायिकसंयम में या छेदोपस्थापनिकसंयम में होता है, किन्तु परिहारविशुद्धिसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम या यथाख्यातसंयम में नहीं होता। 30. एवं बउसे वि। [30] बकुश के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार समझना चाहिए / 31. एवं पडिसेवणाकुसीले वि। [31] और इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में समझना चाहिए। 32. कसायकुसीले गं० पुच्छा। गोयमा ! सामाइयसंजमे वा होज्जा जाब सुहमसंपरायसंजमे वा होज्जा, नो प्रहक्खायसंजमे होज्जा। [32 प्र. भगवन् ! कषायकुशील पांच संयमों में से किन-किन संयमों में होता है ? [32 उ.] गौतम ! वह सामायिक से लेकर यावत् सूक्ष्मसम्परायसंयम तक में होता है; किन्तु यथाख्यातसंयम में नहीं होता। 33. नियंठे णं० पुच्छा। गोयमा ! गो सामाइयसंजमे होज्जा जाव णो सुहमसंपरायसंजमे होज्जा, अहयखायसंजमे [33 प्र. भगवन् ! निर्ग्रन्थ किस संयम में होता है ? [33 उ.] गौतम ! वह सामायिकसंयम (से लेकर) यावत् सूक्ष्मसम्पराय तक में नहीं होता, एकमात्र यथाख्यातसंयम में होता है / 34. एवं सिणाए वि / [दारं 5] / [34] इसी प्रकार स्नातक के विषय में समझना चाहिए / [पंचम द्वार] 1. (क) भगवती-उपक्रम, पृ. 604 (ब) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3357-3358 . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org