________________ [व्याख्याप्राप्तिसूत्र 220. सम्वेए कालतो केवचिरं होति ? जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं / |220 प्र.] भगवन् ! (द्वि-प्रदेशी स्कन्ध) सर्वकम्पक कितने काल तक रहता है ? 220 उ.] बह जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट प्रावलिका के असंख्यातवें भाग तक सर्वकम्पक रहता है। 221. निरेए कालतो केचिरं होति ? जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेनं कालं / 221 प्र.] भगवन् ! (द्वि-प्रदेशी स्कन्ध) निष्कम्पक कितने काल तक रहता है ? [221 उ.} गौतम ! वह जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक निष्कम्पक रहता है। 222. एवं जाय अणंतपदेसिए। [222] इसी प्रकार यावत् अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध तक (के कम्पनादि-काल के विषय में जानना।) 223. परमाणुपोग्गला गं भंते ! सम्वेया कालतो केवचिर होति ? गोयमा ! सम्वद्धं / [223 प्र.] भगवन् ! (अनेक) परमाणु-पुद्गल सर्वकम्पक कितने काल तक रहते हैं ? [223 उ.] गौतम ! (वे) सदा काल (सर्वकम्पक रहते हैं / ) 224. निरेया कालतो केचिरं? सम्बद्धं। (224 प्र.] भगवन् ! (अनेक परमाणु-पुद्गल) निष्कम्पक कितने काल तक रहते हैं ? {224 उ.] गौतम ! (वे) सदा काल (निष्कम्पक रहते हैं / ) 225. दुप्पदेसिया णं भंते ! खंधा देसेया कालतो केवचिरं होंति ? सम्वद्ध। 225 प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशो स्कन्ध देश कम्पक कितने काल तक रहते हैं ? 225 उ.] गौतम ! (वे) सर्वकाल (देशकम्पक रहते हैं / ) / 226. सव्वेया कालतो केचिरं ? सम्वद्धं / [226 प्र. भगवन् ! वे कितने काल तक सर्वकम्पक रहते हैं ? [226 उ.] गौतम ! (बे) सदा काल (सर्वकम्पक रहते हैं।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org