________________ 374] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र निष्कम्पक, ये तीन विशेषण प्रयुक्त किये गए हैं / इस प्रकार ये 11 पद होते हैं। प्रदेशार्थविषयक विचारणा में भी ये ही 11 पद होते हैं। किन्तु द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ उभय की विचारणा में बाईस पद न बताकर बीस ही पद बताए गए हैं। इसका कारण यह है कि सकम्प और निष्कम्प परमाणुओं के द्रव्यार्थ और प्रदेशार्थ, इन दो पक्षों के बदले द्रव्यार्थ-अप्रदेशार्थ, यह एक ही पद बनता है। इस प्रकार द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ इस उभयपक्ष के बीस ही पद घटित होते हैं / ' धर्मास्तिकायादि के मध्यप्रदेशों की संख्या का निरूपण 246. कति णं भंते ! धम्मत्थिकायस्स मज्भपएसा पन्नत्ता? गोयमा ! अट्ठ धम्मस्थिकायस्स मज्झपएसा पन्नत्ता। [246 प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? / 246 उ.] गौतम ! धर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश पाठ कहे हैं। 247. कति णं भंते ! अधम्मस्थिकायस्स मज्झपएसा पन्नता ? एवं चेव / [247 प्र. भगवन् ! अधर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? [247 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) आठ कहे हैं। 248. कति णं भंते ! आगासस्थिकायस्स मज्भपएसा पन्नत्ता? एवं चेव। [248 प्र. भगवन् ! आकाशास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? [248 उ.] गौतम ! पूर्ववत् पाठ कहे हैं। 246. कति णं भंते ! जीवस्थिकायस्स मज्झपएसा पन्नत्ता ? . गोयमा ! अट्ठ जीवस्थिकायस्स मज्झपएसा पन्नत्ता। | 246 प्र. भगवन् ! जीवास्तिकाय के मध्य-प्रदेश कितने कहे हैं ? [246 उ. गौतम ! जीवास्तिकाय के मध्य-प्रदेश पाठ कहे हैं। विवेचन-मध्य-प्रदेश आठ ही क्यों और कहाँ-कहाँ--चूर्णिकार के मतानुसार धर्मास्तिकाय के पाठ मध्य (बीच के) प्रदेश पाठ रुचक-प्रदेशवर्ती होते हैं / यद्यपि धर्मातिकाय आदि तीनों लोकप्रमाण होने से उनका मध्य-भाग रुचक-प्रदेशों से असंख्यात-योजन दूर रत्नप्रभा-पृथ्वी के अवकाशान्तर में अवस्थित है, ठीक रुचकवर्ती नहीं है, तथापि रुचकप्रदेश दिशाओं और विदिशाओं के उत्पत्ति स्थान होने से उनकी धर्मास्तिकाय प्रादि के मध्यरूप से विवक्षा हो, ऐसा सम्भव है। प्रत्येक जीव के आठ रुचक-प्रदेश होते हैं / वे उस जीव के शरीर की सर्व-अवगाहना के ठीक मध्यवर्ती भाग में होते हैं / इसलिए उन्हें मध्यप्रदेश कहते हैं / 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 887 2, भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 287 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org