________________ पच्चीसयां शतक : उद्देशक 5 विवेचन-पानप्राणरूप कालमान से लेकर शीर्षप्रहेलिकारूप कालमान तक-प्रस्तुत दो सूत्रो में आवलिकारूप कालमान के अतिदेशपूर्वक स्तोक प्रादि का आनप्राण से शीर्षप्रहेलिका तक के कालमान की प्ररूपणा की गई है / सागरोपमादि कालों में एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा से पल्योपम-संख्या निरूपण 28. सागरोवमे णं भंते ! कि संखेज्जा पलिग्रोवमा० पुच्छा। गोयमा ! संखेज्जा पलिओवमा, नो असंखेज्जा पलिनोवमा, नो अणंता पलिओवमा। [28 प्र.] भगवन् ! सागरोपम क्या संख्यात पल्योपमरूप है ? इत्यादि प्रश्न / [28 उ.] गौतम ! वह संख्यात पल्योपमरूप है, किन्तु असंख्यात पल्योपमरूप या अनन्त पल्योपमरूप नहीं है। 26. एवं प्रोसप्पिणी वि, उस्सप्पिणी वि। |26] इसी प्रकार अवपिणी और उत्सपिणी के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए / 30. पोग्गलपरियट्टे णं० पुच्छा। गोयमा ! नो संखेज्जा पलिग्रोवमा, नो असंखेज्जा पलिओवमा, अणंता पलिओवमा। [30 प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिवर्तन क्या संख्यात पल्योपमरूप है ? इत्यादि प्रश्न / [30 उ.] गौतम ! वह संख्यात पल्योपमरूप नहीं है और न असंख्यात पल्योपमरूप है, किन्तु अनन्त पत्योपमरूप है। 31. एवं जाव सव्वद्धा। |31] इसी प्रकार यावत् सर्वकाल (सर्वाद्धा) तक जानना / 32. सागरोवमा णं भंते ! कि संखेज्जा पलिओवमा० पुच्छा। गोयमा ! सिय संखेज्जा पलिश्रोवमा, सिय असंखेज्जा पलिनोवमा, सिय अणंता पलिप्रोवमा। [32 प्र.] भगवन् ! सागरोपम क्या संख्यात पल्योपमरूप हैं ? इत्यादि प्रश्न / [32 उ.] गौतम ! वे कदाचित् संख्यात पल्योपमरूप हैं, कदाचित् असंख्यात पल्योपमरूप हैं और कदाचित् अनन्त पल्योपमरूप हैं / / 33. एवं जाव प्रोसप्पिणी वि, उस्सप्पिणी वि। [33] इसी प्रकार यावत् अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल (तक) के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। 34. पोग्गलपरियट्टा पं० पुच्छा। गोयमा! नो संखेज्जा पलिओवमा, नो असंखेज्जा पलिनोवमा, अणंता पलिग्रोवमा। [34 प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिवर्तन क्या संख्यात पल्योपमरूप होते है ? इत्यादि प्रश्न / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org