________________ [व्याख्याप्रप्तिसूत्र सभी नैरयिकादि जीवों की स्थिति के समयों को एकत्रित किया जाय और उनमें से चारचार का अपहार किया जाए तो सभी नैरयिक सामान्यादेश से कृतयुग्म-समय यावत् कल्योज-समय की स्थिति वाले होते हैं और विशेषादेश से एक समय में कृतयुग्मादि चारों प्रकार के हैं।' सामान्य जीव एवं चौबीस दण्डकों में वर्णादि पर्यायापेक्षया कृतयुग्मादि प्ररूपणा 55. जीवे णं भंते ! कालवण्णपज्जवेहि कि कडजुम्मे० पुच्छा। गोयमा ! जीवपएसे पडुच्च नो कडजुम्मे जाव नो कलियोगे; सरीरपएसे पडुच्च सिय कडजुम्मे जाब सिय कलियोगे। [55 प्र. भगवन् ! जीव काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि पृच्छा। [55 उ.] गौतम ! जीव (सात्म-) प्रदेशों की अपेक्षा न तो कृतयुग्म है और यावत् न कल्योज है, किन्तु शरीरप्रदेशों की अपेक्षा कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज है / 56. एवं जाव बेमाणिए। [56] (यहाँ से लेकर) यावत् वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए। 57. सिद्धो ण चेव पुच्छिज्जति / [57] यहाँ सिद्ध के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे अरूपी हैं) / 58. जीवा णं भंते ! कालवणपज्जवेहि० पुच्छा। गोयमा! जीवपएसे पडुच्च प्रोधादेसेण वि विहाणादेसेण वि नो कङजुम्मा जाब नो कलियोगा; सरीरपएसे पडुच्च श्रोधादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि / [58 प्र. भगवन् ! (अनेक) जीव काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / [58 उ.] गौतम ! जीव-(प्रात्म-) प्रदेशों की अपेक्षा प्रोपादेश से भी और विधानादेश से भी न तो कृतयुग हैं यावत् न कल्योज हैं। शरीरप्रदेशों की अपेक्षा प्रोधादेश से कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं, विधानादेश से वे कृतयुग्म भी हैं, यावत् कल्योज भी हैं। 56. एवं जाव वेमाणिया / [56] (यहाँ से लेकर) यावत् वैमानिकों तक इसी प्रकार का कथन समझना चाहिए। 60. एवं नीलवण्णपज्जवेहि वि दंडयो भाणियब्वो एगत्त-पुहत्तणं / [60] इसी प्रकार एकवचन और बहुवचन से नीले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा भी वक्तव्यता कहनी चाहिए। 1. भगवती अ. बत्ति, पत्र 875-76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org