________________ 340] | व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [80 प्र.] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे हैं ? [80 उ.] गौतम ! शरीर पांच प्रकार के कहे हैं, यथा-औदारिक, वैक्रिय, यावत् कार्मणशरीर / यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का बारह्वां शरीरपद समग्र कहना चाहिए। जीव तथा चौवीस दण्डकों में सकम्प-निष्कम्प तथा देशकम्प-सर्वकम्प प्ररूपणा 81. [1] जीवा णं भंते ! कि सेया, निरेया ? गोयमा ! जीवा सेया वि, निरेया वि। [81-1 प्र.] भगवन् ! जीव सैज (सकम्प) हैं अथवा निरेज (निष्कम्प) हैं ? [81-1 उ.] गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं। [2] से केणछैणं भंते ! एवं वुच्चइ-जीवा सेया वि, निरेया वि ? गोयमा ! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा—संसारसमावनगा य, असंसारसमावनगा य / तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अणंतरसिद्धा य, परंपरसिद्धा य, तत्थ णं जे ते परंपरसिद्धा ते णं निरेया। तत्थ णं जे ते अणंतरसिद्धा ते णं सेवा। [81-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से कहते हैं कि जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं ? [81-2 उ.] गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे हैं यथा-संसार-समापन्नक और असंसारसमापन्नक / उनमें से जो असंसार-समापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं। सिद्ध जीव दो प्रकार के कहे हैं / यथा-अनन्तर-सिद्ध और परम्पर-सिद्ध / जो परम्पर-सिद्ध हैं, वे निष्कम्प हैं और जो अनन्तर-सिद्ध है, वे सकम्प हैं। 82. ते णं भंते ! कि देसेया, सम्वेया ? गोयमा! नो देसेया, सम्वेया। [82 प्र.] भगवन् ! (अनन्तरसिद्ध, जो सकम्प हैं) वे देशकम्पक हैं या सर्व-कम्पक हैं ? [82 उ.] गौतम ! वे देशकम्पक नहीं, सर्व-कम्पक हैं / 83. तत्थ णं जे ते संसारसमावनगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा सेलेसिपडिवनगा य, असेलेसिपडिवनगा य / तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवनगा ते णं निरेया। तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवनगा ते णं सेया। [83] जो संसार-समापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के कहे हैं / यथा-शैलेशी-प्रतिपन्नक और अशैलेशो-प्रतिपन्नक / जो शैलेशी-प्रतिपन्नक हैं, वे निष्कम्प हैं, किन्तु जो अशैलेशी-प्रतिपन्नक हैं, वे सकम्प हैं। 84. ते णं भंते ! कि देसेया, सब्वेया? गोयमा ! देसेया वि, सव्वेया वि / से तेणठेणं जाव निरेया वि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org