________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 4] 166. परमाणुपोग्गला गं भंते ! कि कडजुम्मसमर्याद्वितीया० पुच्छा। गोयमा ! प्रोधादेसेणं सिय कडजुम्मसमय द्वितीया जाव सिय कलियोगसमय द्वितीया विहाणादेसेणं कडजुम्मसमयद्वितीया वि जाव कलियोगसमद्वितीया वि। [166 प्र.] भगवन् ! (बहुत) परमाणु-पुद्गल कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं ? इत्यादि प्रश्न / 6166 उ.] गौतम ! अोघादेश से वे कदाचित् कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं, यावत् कदाचित् कल्योज-समय की स्थिति वाले हैं, विधानादेश से भी वे कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले भी हैं, यावत् कल्योज-समय की स्थिति वाले भी हैं / 167. एवं जाव अणंतपएसिया। [167] इसी प्रकार यावत् अनन्त प्रदेशोस्कन्ध तक जानना चाहिए। 168. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कालवण्णपज्जवेहि कि कडजुम्मे, तेयोगे ? जहा ठितीए वत्तव्वया एवं वष्णेसु वि सन्वेसु, गंधेसु वि / [168 प्र.] भगवन् ! (एक) परमाणु-पुद्गल काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है अथवा त्र्योज है ? इत्यादि प्रश्न / [168 उ.] गौतम ! जिस प्रकार स्थिति-सम्बन्धी वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार वर्णों एवं सभी गन्धों की वक्तव्यता कहनी चाहिए। 166. एवं चेव रसेसु विजाव महुरो रसो ति। [166] इसी प्रकार सभी रसों की यावत् मधुररस तक की वक्तव्यता जाननी चाहिए। 170. अणंतपएसिए० गं भंते ! खंधे कक्खडफासपज्जवेहि किं कडजुम्मे पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलियोगे। [170 प्र.] भगवन् ! (एक) अनन्तप्रदेशीस्कन्ध कर्कशस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न / [170 उ.] वह कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज है / 171. अणंतपएसिया णं भंते ! खंधा कक्खडफासपज्जवेहि कि कडजुम्मा० पुच्छा। गोयमा ! प्रोधादेसेणं सिया कडजुम्मा जाब सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि। [171 प्र.] भगवन् ! (अनेक) अनन्तप्रदेशीस्कन्ध कर्कशस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / [171 उ.] गौतम ! ओघादेश से वे कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज हैं तथा विधानादेश से कृतयुग्म भी हैं, यावत् कल्योज भी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org