________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 4] [343 वर्णगन्धादि वाले पुद्गलों की अनन्तता 63. एगगुणकालगा गं भंते ! पोग्गला फि संखेज्जा ? एवं चेव। [93 प्र | भगवन् ! एकगुण काले पुद्गल संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न / [63 उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना / 64. एवं जाव अणंतगुणकालगा। | 94] इसी प्रकार यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों के विषय में जानना / 65. एवं अवसेसा वि वण्ण-गंध-रस-फासा नेयव्वा जाव अणंतगुणलुक्ख त्ति / [95] इसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गलों के विषय में भी यावत् अनन्तगुण रूक्ष पर्यन्त जानना / परमाणु-पुद्गल से अनन्तप्रदेशी स्कन्धों तक को द्रव्य-प्रदेशार्थ से यथायोग्य बहुत्व प्ररूपणा 66. एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं दुपएसियाण य खंधाणं दव्यद्वयाए कमरे कयरेहितो बहुया? गोयमा ! दुपदेसिएहितो खंधेहितो परमाणुपोग्गला दब्वट्ठयाए बहुगा। [66 प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? {66 उ.) गौतम ! द्विप्रदेशी स्कन्धों से परमाणु पुद्गल द्रव्यार्थ से बहुत हैं / 67. एएसि णं भंते ! दुपएसियाणं तिपएसियाण य खंधाणं दव्वद्वताए कयरे कयरेहितो बहुगा? गोयमा ! तिपएसिएहितो खंहितो दुपएसिया खंधा दवट्ठयाए बहुगा। [67 प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशी और त्रिप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? [97 उ.] गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध से द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं। 18. एवं एएणं गमएणं जाव बसपएसिएहितो खंहितो नवपएसिया खंधा दबट्टयाए वहुया / [18] इस गमक (पाठ) के अनुसार यावत् दशप्रदेशी स्कन्धों से नवप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं। 66. एएसि णं भंते ! दसपदे० पुच्छा। गोयमा ! दसपदेसिएहितो खंहितो संखेज्जपएसिया खंधा दवट्ठयाए बहुया / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org